शुक्रवार, 7 मार्च 2014

नक्सलवाद और खून खराबे की राह पर अरविन्द केजरीवाल .

पिछले कुछ दिनों से केजरीवाल मिडिया के कैमरों के फोकस से दूर हो रहे थे. कांग्रेस के साथ गठबंधन करके घसीटी गयी दिल्ली सरकार केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने की पागलपन भरी महत्त्वाकांक्षा के बोझ के नीचे दब के ठहर गयी. अगर ध्यान से देखें तो शुरू से ही केजरीवाल की पार्टी विरोध की राजनीति करती आई है. भारतीय राजनीति के स्वघोषित ईमानदार ने जब दिल्ली की सत्ता 49 दिन में छोड़ दी इस कारण  दिल्ली की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही थी और केजरीवाल का जनाधार तेजी से निचे जा रहा था अतः एक बार पुनः केजरीवाल ने अपना पुराना दांव चलते हुए हिन्दुस्थान के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता और भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए गुजरात के विकास कार्यों का जायजा लेने के लिए गुजरात भ्रमण के कार्यक्रम का एक और स्टंट चला .यहाँ एक बात ध्यान देखने योग्य है की अब केजरीवाल जैसा व्यक्ति जिसने  दिल्ली की सत्ता ढंग से दो माह भी नहीं चला पाया और मैदान छोड़ कर भाग  गया वो पिछले १२ वर्षों से सफल शासन देने वाले नरेंद्र मोदी के कार्यों का मूल्यांकन करने का अद्भुत स्टंट करने गुजरात को निकला है.. राजनितिक दृष्टिकोण से देखें तो कांग्रेस में उर्जा नहीं बची है जो गुजरात में मोदी का विरोध कर सके अतः कांग्रेस से अपने पुराने अस्त्र के रूप में केजरीवाल को परोक्ष समर्थन दे कर नरेंद्र भाई मोदी को रोकने का एक अंतिम प्रयास कर लेना चाहती है. इस कुख्यात गठबंधन में कुछ न्यूज़ चैनेल और पुन्य प्रसून वाजपेयी जैसे दलाल पत्रकार भी सम्मिलित हैं. 5 मार्च को जैसे ही आम चुनावो के तारीखों की घोषणा हुई केजरीवाल ने आदर्श चुनाव संहिता और हिन्दुस्थान के कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए लगभग २० गाडियों के काफिले के साथ गुजरात भ्रमण पर निकले रास्ते में चुनाव आयोग के नियमो के अनुसार पुलिस ने केजरीवाल के काफिले को रोक कर, जब २० से ज्यादा वाहनों के एक साथ चुनाव प्रचार करने पर प्रश्न किया तो केजरीवाल ने खुद को गिरफ्तार करने की मांग रक्खी. दरअसल केजरीवाल चाहते भी यही थे की गुजरात में उन्हें गिरफ्तार किया जाये जिससे वो तथाकथित ईमानदारी के एकमात्र पुरोधा और नायक बन कर उभरे और एक ही दिन में नरेंद्र मोदी के समकक्ष आ खड़े हो जाएँ और केजरीवाल और उनकी गैंग अपनी इस राजनीति में काफी हद तक तब सफल होती दिखी जब गुजरात के पाटन में  पुलिस ने उन्हें लगभग २० मिनट तक थाने में बैठाये रक्खा.इस खबर को केजरीवाल के मिडिया के मित्रों ने अनवरत चलाना शुरू कर के पुनः केजरीवाल को युगपुरुष साबित करना प्रारंभ कर दिया और यहाँ तक बाते की जाने लगी की क्या मोदी केजरीवाल से डर गए हैं?? सच कहें तो शाम को ५बजे से पहले तक केजरीवाल अपने मनसूबे में सफल होते नजर आये मगर जैसे ही चुनाव आयोग का कडा रुख केजरीवाल ने देखा, प्रसिद्धि पाने हेतु उन्होंने अपना माओवादी और नक्सली रूप दिखाने का निर्णय लेते हुए मिडिया और एस एम एस द्वारा अपने सभी कार्यकर्ताओं को बीजेपी आफिस पर हमले का आदेश जारी कर दिया, जिसे आम आदमी कार्यकर्त्ता शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नाम देते रहे. शाम लगभग 5.15 बजे आम आदमी के पत्रकार से नेता बने आशुतोष गुप्ता और पत्रकार से नेता बनी शाजिया इल्मी के नेतृत्व में सैकड़ो आम आदमी कार्यकर्ताओं ने पुनः चुनाव आचार संहिता का उलंघन करते हुए दिल्ली के बीजेपी कार्यालय में हमला बोल दिया और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पोस्टरों को फाड़ डाला एवं तोड़फोड़ शुरू कर दिया
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लाठी डंडे से लैस हो कर केजरीवाल प्रायोजित हमला 
केजरीवाल के कार्यकर्त्ता लाठी डाँडो से लैस होकर तोड़फोड़ करते रहे और दिल्ली पुलिस मूकदर्शक बनी रही. जब स्थिति बिगड़ने लगी तो भाजपा के कार्यकर्ताओं ने आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध प्रारंभ किया और लगभग ४५ मिनट बाद ये अराजकता का कार्यक्रम दिल्ली पुलिस द्वारा बंद कराया गया . ज्ञातव्य हो की इस प्रदर्शन हेतु केजरीवाल की पार्टी ने कोई अनुमति नहीं ली थी और पूर्णरूप से गैरकानूनी रूप से भाजपा कार्यालय पर एकत्र हुए उसके बाद उग्र एवं हिंसक प्रदर्शन किया .


अब सवाल ये है की गाँधी के आदर्शों की बात करने वाली आम आदमी पार्टी को माओवादियों और आतंकियों जैसे स्टंट करने की क्या जरुरत आन पड़ी .. इस पर एक गहन विचार की आवश्यकता है , सत्य ये है की जब व्यक्ति अपने बुरे दौर से गुजरता है तो वास्तविक रूप में आ जाता है कुछ ऐसा ही है केजरीवाल के लोगो के साथ.दरअसल माओवाद और अलगाववाद के आधार पर खडी और पाकिस्तान और बिदेशी चंदे के खाद पानी का असली रूप यही है.नक्सलवाद की तर्ज पर बात बात पर सड़क पर उतर कर छापामार तरीके से अराजकता और हिंसा फैला कर केजरीवाल की पार्टी ने शहरी माओवाद का जो ताना बाना बुनना शुरू किया है उसका परिणाम चुनाव की घोषणा होते ही पहले दिन देखने को मिल गया.
आम आदमी पार्टी के विधायक बीजेपी कार्यालय पर हमला करते हुए 


जिस प्रकार नरेंद्र मोदी का कद प्रतिदिन राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है देश के साथ साथ बिदेश में भी कई शक्तियां इससे विचलित हैं. चीन और अमरीका कभी नहीं चाहेंगे की भारत राजनितिक रूप से मजबूत हो और यहाँ  एक स्थिर और रीढ़ वाली सरकार बने जो आर्थिक और सामरिक दृष्टि से मजबूत निर्णय ले सके . चूकी नरेंद्र मोदी ने अपना आर्थिक सामरिक और विदेशनीति का अजेंडा मजबूती से कई मंचों पर रक्खा है जो अब भारतविरोधियों के माथे पर चिंता की लकीरे खीच रहा है. ये बात इससे भी पुष्ट हो जाती है की इस चुनाव का केंद्र बिंदु और कांग्रेस की गोंद में बैठी सभी पार्टियों का  एकमात्र विरोध का अजेंडा  नरेंद्र मोदी ही हैं..
मीडिया द्वारा पोषित  और विश्व के बचे एकमात्र स्वघोषित ईमानदार पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल दिन रात मोदी पर हमले कर रहे हैं जिससे की कम से कम एक बार नरेंद्र मोदी उनके आरोपों पर मुह खोले और वो रातो रात मीडिया के सहायता से नरेंद्र मोदी के समकक्ष खड़े होकर उनकी शक्ति को कमजोर करके भारत में पुनः एक राजनितिक अस्थिरता के मार्ग में धकेल कर खोखला किया जाये. मगर नरेन्द्रमोदी ने अपने एक कुशल प्रशासक का गुण और सालो का राजनितिक अनुभव दिखाते हुए “हाथी चलता रहता है और कुत्ते भोंकते रहते हैं” की नीति का अनुसरण करते हुए अपने राष्ट्रधर्म की लक्ष्य साधना में लगे हुए हैं. कांग्रेस और अमरीका पोषित केजरीवाल खीझ में एक के बाद एक अराजक स्टंट करते हुए मिडिया की सुर्खियाँ और फोर्ड फाउन्डेशन तथा पाकिस्तान से चंदा इकठ्ठा करने में व्यस्त हैं..
वस्तुस्थिति यह है की आज केजरीवाल का नाम आर्थिक,सामजिक,राजनितिक अराजकता का पर्यायवाची बन गया है. केजरीवाल का प्रभाव जहाँ भी है उस जगह को देखकर सोमालिया के मोगाधिशु जैसा अनुभव होता है जहाँ सरकार के नाम पर हथियारों से लैस लडाके और यहाँ तहां हिंसा फैलाते वार हेड्स के केजरीवाल जैसे नेता हैं.. अब जनता को यह समझना होगा की जिस प्रकार दिल्ली की जनता ने केजरीवाल पर भरोसा करके धोखा खाया क्या भारत की केन्द्रीय सत्ता के चुनाव में ये गलती दोहराकर पुनः देश को नीतिगत और आर्थिक रूप से पंगु बनाना चाहती है..

आशुतोष की कलम से  

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