रविवार, 4 अगस्त 2013
देश को गुमराह करने की कोशिश
देश इस समय जिस परिस्थिति से गुजर रहा है....सभी को सोचने की जरुरत है..। देश में एक ओर जहां महंगाई, भ्रष्टाचार और लचर कानून व्यवस्था के दौर से गुजर रहा है वहीं दूसरी ओर राजनेता गंदी राजनीति से लोगों को भ्रमित करने की कोशिश रहे हैं...।
इस समय चर्चा आम हो गई है कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो देश के अगले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होगें...। ऐसी स्थिति में इस बात की प्रबल संभावना है कि देश में राजनीतिक ध्रुवीकरण होगा...अगर ऐसे हालात बने तो देश में व्याप्त महंगाई और भ्रष्टाचार का मुद्दा चुनाव में गुम हो जाएगा
..। हिंदू औऱ मुस्लिम मतदाता जाति-धर्म के नाम पर बंट जाएंगे...और देश की भलाई और लोकतंत्र के लिए वोट ना डालकर जाति-धर्म के नाम पर चुनाव में हिस्सा लेंगे...फिर जो हावी होगा..उसकी केंद्र में सरकार बनेगी..। इससे देश और समाज का भला ना होकर देश में सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलेगा...जो आने वाले समय के लिए अच्छा संकेत नही है...। पहले से विरासत में मिली हुई भ्रष्टाचार समेत कई महत्तवपूर्ण मुद्दे जस के तस रह जाएंगे...। और वहीं लोग खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारेंगे जिन्हें रोजी-रोटी की सख्त जरुरत होगी..जिनके बच्चे महंगाई की वजह से अच्छी पढ़ाई नही कर सकते ...आर्थिक स्थिति का हवाले देकर मां-बाप अपने ही नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करेंगे...और बच्चों के सपने हकीकत में शायद ही बदल पाएं...।
वर्तमान केंद्र सरकार से जनता दुखी है..ये बात हम खुद से नहीं कह रहे ...कई टीवी चैनलों के द्वारा दिखाए गए चुनाव पूर्व सर्वे के आधार पर कह रहे हैं...टीवी न्यूज चैनलों की माने तो आने वाले आम चुनाव में कांग्रेस सरकार को जोर का झटका लगने वाला है..। शायद इसका अंदाजा कांग्रेस को लग चुका है..इसलिए कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेगी कि आने वाले आम चुनाव में महंगाई औऱ भ्रष्टाचार मुद्दा बने..। खास रणनीति के तहत कांग्रेस 2002 के गोधरा दंगे को बीच-बीच में उछाल देती है..और नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक बताकर बीजेपी के खिलाफ मुसलमानों को भड़काती है..। वैसे अगर दंगे की बात करें तो कांग्रेस के भी हाथ दूध के धुले नही हैं...। 1984 का सिख दंगा लोगों के जेहन में अभी भी है..जिसे सिख कभी भी माफ नहीं करेंगे..।
सांप्रदायिकता के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दल खूब शोर करते हैं....सभी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताकर विपक्षी पार्टियों को सांप्रदायिकता से जोड़ते हैं...कुछ राजनेता तो बकायदा जहर उगलते हैं..कोई किसी संगठन को आतंकी से जोड़ता है तो कोई नेता विपक्षी पार्टियों पर आतंकवादियों और नक्सलवादियों का सहयोग औऱ समर्थन करने की बात करते हैं..कोई राजनीतिक दल आतंकी संगठन के नाम पर धार्मिक संगठनों पर पाबंदी लगाने की मांग करते हैं..। ये सब इसीलिए होता है क्योंकि इन नेताओं को मुसलिम वोट चाहिए..मुसलिम वोट लेने के लिए कुछ राजनीतिक दल हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं..और ऐसा वोट लेने के समय पर ही अक्सर होता है...ऐसा नहीं है लोगों के विरोध के बाद फिर विवादित नहीं देखने को मिलेंगे..। इन जनसेवक राजनेताओं को कौन समझाए कि वे जो बोल रहे हैं वह भी किसी सांप्रदायिक बयान से कम नहीं..जो कभी भी दंगा को भड़का सकता है..। ऐसे लोगों को धार्मिक सदभाव को बनाए रखने के लिए कम से कम मर्यादा में रहना चाहिए..।
मेरे समझ से कोई भी राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष नहीं है..। सभी जाति-धर्म और क्षेत्रवाद के नाम पर राजनीत कर रहे हैं..। ऐसा तब दिखता है जब कोई पार्टी किसी को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देती है तो सबसे पहले उसकी जाति-धर्म औऱ फिर क्षेत्रियता को देखती है..। अब समय आ गया है कि आम आदमी धर्म-जाति औऱ क्षेत्रवाद के ऊपर उठकर वोट करे और ईमानदार नेता का चुनाव करे..। अक्सर देखा जाता है कि राजनीति में ज्यादातर सांसद औऱ विधायक दागी होते हैं और यही लोग सरकार में मंत्री बनते हैं...।
अभी हाल में आंध्र प्रदेश से तेलगांना को अलग राज्य बनाने का रास्ता साफ हुआ है.. तेलंगाना को बनाने के लिए कुछ राजनीति दल और वहां के क्षेत्रिय नेता राज्य को तोड़कर सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं ...अलग राज्य बनाने के पीछे सरकार और वहां के लोगो का तर्क है कि विकास को बढ़ावा मिलेगा..भाई मेरे अगर जिसको वहां की जनता और विकास को लेकर इतना ही मोह-माया है तो क्यों नहीं राज्य बांटने के बजाय तेलंगाना के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग करते ..और वहां का विकास जमकर करवाते....संयोग से आंध्र प्रदेश और केंद्र सरकार दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है...ऐसे में आंध्र प्रदेश को शिकायत भी नहीं रहती कि केंद्र सरकार उसकी मदद नहीं कर रहा है मगर ऐसा नहीं हुआ..क्योंकि नेता विकास के नाम पर जनता को गुमराज करके सिंहासन पर बैठना चाहते है....लालबत्ती में घूमना नेताओं की जन्मजात लालसा रही रहती है..। आपको याद दिला दूं विकास के नाम पर उत्तराखंड और झारखंड राज्य का गठन किया गया था..। वहां के लोगों और नेताओं का मत था कि अलग राज्य के गठन से विकास होगा..मगर अभी तक ऐसा होता कभी दिखा नहीं...झारखंड में सत्ता के लिए हमेशा से खींच-तान रही है..और पिछले तेरह साल
में ग्यारह मुख्यमंत्री बने...लगभग सभी ने पूरे पांच साल सरकार नहीं चला पाए...। झारखंड में नक्सलियों का इतना प्रभाव है कि सरकारी अधिकारी और कर्मचारी मुफ्त में जान गवां देते हैं...। हिंसा और राजनीतिक उथल-पुछथ का पर्याय बन चुका है..। अब रही बात उत्तऱाखंड की वहां भी कोई खास विकास नहीं हुआ है...सरकार की नाकामी की वजह से अभी हाल में हजारों को केदारनाथ में जान गवानी पड़ी...। मेरे कहने का मतलब छोटे-छोटे राज्य बनाने से किसी क्षेत्र विशेष का विकास नहीं होता..राज्य बंटने के बाद बहुत सारी औपचारिकताएं होती हैं..जिनमें बहुत पैसे लगते हैं....। राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी की वजह से किसी क्षेत्र विशेष का विकास नहीं हो पाता क्योंकि भ्रष्टाचार में सभी योजनाएं समाहित हो जाती है..और गरीब लोगों को ठेंगा दिखा जाता है...।
इस समय कुछ पार्टियां अपनी नाकामी पर परदा डालने की कोशिश कर रही है..। ये पार्टियां सांप्रदायिकता के नाम पर नेता जनता को धोखा देने का काम रही हैं..। हिंदू-मुस्लिम, सिख और ईसाइयों को वोट के लिए बांटने की कोशिश की जा रही है..। भ्रष्टाचार खूब चरम पर है और महंगाई से जनता की कमर टूट रही है लेकिन जनता का ध्यान बांटने के लिए कभी गरीबी की परिभाषा देकर नया बखेड़ा खड़ा किया जाता है तो कभी जनता को राहत के नाम पर झुनझुना पकड़ा दिया जाता है..। वर्तमान में बहुत कम ही नेता है जो जमीनी समस्याएं से दो-चार हैं और जनता की सुनते हैं..। नेताओं को अपना उल्लू सीधा करने के लिए कई नखरे आते है...चुनाव के दौरान लोग गरीब औऱ किसान का बेटा बन जाते हैं चुनाव जीतने के बाद कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार में डूब जाते हैं...। जनता के लिए यही वो समय है जब खुद को इन भ्रष्टाचारियों से निजात पाने के लिए सही नेता का चुनाव करे...अगर इस बार भी कुछ राजनीतिक पार्टियों के बहकावें जनता आयी तो भोलीृ-भाले आम नागरिक को इसकी कीमत ब्याज के साथ चुकानी पड़ सकती है...।
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बहुत अच्छा और सामयिक विश्लेषण किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंhttp://mishrasp.blogspot.com
सुन्दर प्रस्तुति!
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