आजकल
एक बहस चल पड़ी है गरीबी की रेखा की । वास्तव मे इसकी वजह है योजना आयोग द्वारा
घोषित गरीबी की नई परिभाषा की । इसके अनुसार यदि ग्रामीण क्षेत्र मे किसी व्यक्ति
की आय रु 27.20 और शहरी क्षेत्र मे 33.30 रुपये
प्रतिदिन से अधिक होगी तो उसे गरीब नही माना जाएगा । लोग इसके खिलाफ आंदोलित है ।
उन्हे लगता है कि ये गरीबों के साथ भद्दा मज़ाक है और गरीबी के आंकड़ो के साथ फ़्राड है।
एक राजनैतिक दल के प्रवक्ताओ ने कहा कि वे 5 रुपये और 12 रुपये मे क्रमश: दिल्ली
और मुंबई मे भर पेट खाना खा सकते है । एक सज्जन ने कहा कि हाँ खाना तो 1 रुपये मे
भी खाया जा सकता है और 100 रुपये मे भी नहीं खाया जा सकता है क्योकि ये इस पर
निर्भर करता है कि क्या खाया जा रहा है और कहाँ खाया जा रहा है। इन वक्तव्यों को जिस
किसी ने सुना दंग रह गया और लगभग सभी ने
बड़ी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की । ऐसा लगता है कि ये क्र्रूर मज़ाक है और लोगो के घाओं
पर नमक छिड़कने जैसा है । ये मज़ाक मे कहा गया
था या जानबूझ कर पर लोगो के दिलो मे गहराई
तक चोट कर गया । हो सकता है कि कहने वालों के दिमाग मे डालर बसा हो लेकिन इतना जरूर
है कि ऐसे लोग आम जनता से पूरी तरह कटे हुये है उन्हे वास्तविकता का बिल्कुल ज्ञान
नही है । स्वाभाविक है ऐसे लोग जनता का कितना भला कर सकते है, आसानी से समझा
जा सकता है ।
क्या
है गरीबी की रेखा ?
पूरे
विश्व मे कई प्रणालिया प्रचलित है जिनसे गरीबी
का निर्धारण किया जाता है । इसका उद्देश्य
ये होता है कि गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगो को कल्याण कारी योजनाओ द्वारा
सहायता पहुंचाई जा सके ताकि ऐसे परिवार स्वालम्बी बन सके । प्रत्येक देश के लिए
आर्थिक आधार पर गरीबी की रेखा अलग अलग हो सकती
है। अमेरिका के गरीब, भारत के गरीबों से बहुत अमीर होंगे क्योकि अमेरिका
मे गरीबी का पैमाना हिंदुस्तान से पूर्णतया भिन्न है ।
कैसे
निर्धारित है गरीबी की रेखा ?
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी रेखा
निर्धारण के मूलत: 2 माडल है, पहला प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष।
प्रत्यक्ष
माडल मे जीवन से सीधे जुड़े हुये तीन क्षेत्रो का ध्यान रखा गया है ये है स्वास्थ्य, शिक्षा और
जीवन स्तर । इन तीनों मे कुल 10 सूचकांक है जिन्हे नीचे के चित्र मे दिखाया गया है
।
इस
माडल मे इस बात का ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को जीवन के इन तीन मूलभूत क्षेत्रो मे न्यूनतम सुविधाये उपलब्ध
हो । अत: इन क्षेत्रो मे किए जाने वाला खर्च
गरीबी रेखा का आधार होता है । इन तीनों क्षेत्रो मे किसी मे भी कमी परिवार को गरीबी की रेखा के नीचे ले जा
सकती है। यह माडल अमर्त्यसेन की अवधारणा के बिल्कुल नजदीक है।
अप्रत्यक्ष माडल मे सिर्फ व्यक्ति या परिवार
की आय का ध्यान रखा जाता है और ये कल्पना की जाती है कि अमुक आय मे प्रत्यक्ष माडल
के सभी न्यूनतम सूचकांक स्वत: पूरे हो
जाएंगे । ये माडल गणना मे आसानी और मनमाफिक न्यूनतम आय घोषित किए जा सकने के कारण
सभी विकाशशील देशो मे सरकारो के लिए बेहद लोकप्रिय हैं । सरकारे न्यूनतम आय घटा कर
ये दावा करती है कि उनके शासनकाल मे गरीबी मे कमी आयी है । ऐसा करने का दूसरा सबसे
बड़ा फायदा ये होता है कि सरकार द्वारा प्रायोजित गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों मे आने
वाला खर्च कम हो जाता है क्योकि बहुत से लोग न्यूनतम घोषित आय के आधार पर इन योजनाओ
मे पात्र नही रह जाते है । एक बड़ी विडम्बना की स्थिति तब खड़ी हो जाती है जब लोग गरीबी
की रेखा के नीचे होने का प्रमाण प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते है । स्पष्ट है कि
इस तरह के मानक गरीबी के नहीं भुखमरी के मानको के ज्यादा करीब होते है ।
तेंदुलकर कमेटी के अनुसार ग्रामीण भारत मे 816 रुपये प्रति व्यक्ति और शहरी क्षेत्र मे
1000 प्रति व्यक्ति मासिक आय को गरीबी की रेखा से ऊपर माना गया है । यानी की 5
व्यक्तियों के परिवार मे ग्रामीण क्षेत्र मे 4080 रुपये और शहरी क्षेत्र मे 5000 रुपये
की आय वाले परिवार गरीबी के रेखा के नीचे नहीं होंगे । इससे गरीबो की संख्या 2011-12 मे रेकॉर्ड 22% पर
आ गई । ये 2010-11 मे 29.80% तथा 2004-05 मे
37.2% थी । इसके साथ गरीबो की संख्या 26.93 करोड़ रह
गयी है जिसमे 21.63 करोड़ गाँव मे है। बिहार और उड़ीसा जहां गरीबों की संख्या मे सर्वाधिक
कमी आई है आश्चर्य चकित है कि ये चमत्कार कैसे हो गया ।
इस तरह आंकड़ो की बाजीगरी से गरीबी मे तो
कमी नहीं आएगी अलबत्ता मानव मूल्यों की विश्वसनीयता मे कमी जरूर आएगी ।
प्राचीन
समय से हिंदुस्तान मे मंदिरो और धर्मशालाओं मे प्रसाद बांटने की परंपरा रही है । इसका
उद्देश्य भुखमरी की रेखा के नीचे के लोगो को जीने लायक भोजन उपलब्ध कराना था ताकि कोई
भूख से मरे नहीं। जो लोग वैष्णो देवी धाम की यात्रा पर गए होंगे उन्होने टी सीरीज़ के
गुलशन कुमार का लंगर अवश्य देखा होगा जो चौबीसों घंटे चलता था । झांसी मे मैंने देखा
कि साईं बाबा के मंदिर मे न जाने कबसे लगातार लंगर चलाया जा रहा है ये दान के पैसे
से चलता है अगर आप इसमे एक दिन का लंगर चलना चाहे तो इसमे सम्भवता: कई महीने लगेंगे
क्योकि दान दाताओ ने अग्रिम बुकिंग करा रखी है। इस तरह लखनऊ के संकट मोचन मंदिर तथा
लगभग हर बड़े शहर मे इस तरह की कोई न कोई धर्मार्थ व्यबस्था है। हर बड़े गुरु द्वारे
मे तो लंगर की अनूठी परंपरा है। किन्तु ये धर्मार्थ और परमार्थ भूख मिटाने के उपाय
है गरीबी के रेखा से ऊपर उठाने के नहीं । गरीबी मिटाने के लिए इस देश को व्यापक अर्थो
मे कार्य योजना की आवश्यकता है।
*********शिव प्रकाश मिश्रा *********
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