सोमवार, 31 दिसंबर 2012
रविवार, 30 दिसंबर 2012
अब सर्दियों में लीजिए खरबूजे का मजा
(“पोल इंडिया ” पत्रिका के जनवरी 2013 अंक में प्रकाशित लेख)
खरबूजा खाने के शौकीन लोगों के लिए अच्छी खबर है। गर्मियों के मौसम में उगाया जाने वाला खरबूजा अब सर्दियों में भी आपका गला तर करेगा। मौसम के विपरीत खरबूजा उगाने की सफलता हरियाणा के करनाल जिले में घरौड़ा के कृषि विशेषज्ञों ने हासिल की है। सब्जी उत्कृष्ठता केंद्र घरौंडा के विशेषज्ञों ने पॉली हाउस में ये कामयाबी लगातार तीन साल कठिन परिश्रम के बाद हासिल की।
इस सेंटर के हेड एस. के. यादव बताते हैं कि तीन वर्षो से पॉली हॉउस फार्मिंग पर कार्य कर रहे घरौंडा केंद्र को सर्दियों के मौसम में खरबूजा उगाने में कामयाबी मिली है। एस.के यादव के अनुसार सर्दियों के समय में खरबूजे का दाम 40 से 50 रूपये किलो होता है। ऐसे में किसानो को प्रति एकड़ 5 लाख से ज्यादा की कमाई केवल तीन महीने में खरबूजे की फसल से हो सकती है। और हां सर्दियों के मौसम में खरबूजे को उगाने में लागत भी कम आएगी। एस. के. यादव के मुताबिक एक एकड़ में करीब छः हजार पौधे लगाए जा सकते हैं।
पॉली हॉउस के विशेषज्ञों के मुताबित खरबूजे की खेती में पानी और खाद का इस्तेमाल भी बेहद कम होता है जिससे संसाधनों की भी बचत होती है। सब्जी उत्पादन में कम बचत होने से ज्यादातर किसान गेहूं-धान की फसल चक्र में फंसे रहते है जिनमें पानी का ज्यादा इस्तेमाल प्रयोग होता है। लेकिन, बेमौसमी सब्जियों औऱ फलों की खेती से किसान कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमा सकते है। पानीपत के सब्जी विज्ञान केंद्र के रणधीर सिंह के मुताबिक बेमौसमी खरबूजे का उत्पादन किसानों के लिए बेहद फायदेमंद रहेगा क्योंकि इसका भाव गर्मियों की तुलना में सर्दी में बहुत ज्यादा होता है ।
सर्दियों के दिनों में खरबूजे को पैदा करके किसान शादी-विवाह जैसी शुभ अवसरों पर अच्छे पैसे कमा सकते हैं। खरबूजा खाने के शौकीन भी सर्दियों के दिनों में भी इसका मजा ले सकेंगे। खरबूजे को पैदा करने की तकनीक पूरे देश में बेमौसमी फल और सब्जियों के क्षेत्र में क्रांति पैदा कर सकता है। यानी अगर आप मौसमी फल और सब्जियों के शौकीन हैं तो अब आपको को खास महीनों का इंतजार नहीं करना होगा। वही स्वाद, वही पौष्टिकता हर दिन।
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
अब न्याय नहीं प्रतिशोध चाहिए
हाथों में बैनर, तख़्ती और चार्ट पेपर लिए आक्रोश के साथ बढ़ता जा रहा विकराल कारवाँ। सबके दिलों में धधकती ज्वाला और लबों पर तिलमिलाते अल्फ़ाज़ और इन अल्फ़ाज़ों में निहित प्रश्नों की एक लंबी श्रृंख्ला। आज़ाद भारत के बाद शायद यह दृश्य पहली बार देखने को मिला। मानो सम्पूर्ण देश फिर किसी जंग के लिए एकजुट हो उठ खड़ा हुआ हो। मानो किसी ने देश के ज़मीर पर चोट की हो। मानो निरंकुश सन्नाटे में किसी की चीख हृदय को चीर गई हो। यह एक ऐसा मंजर है जिसे न किसी नेतृत्व की आवश्यकता है और न किसी आह्नान की फिर भी इनके उद्देश्य निश्चित हैं और मंजिल स्पष्ट।
यह जंग थी और है औरत के अधिकारों की, परन्तु इस बार इन अधिकारों की श्रेणी में आरक्षण अथवा संपत्ति का अधिकार सम्मिलित नहीं है वरन् यह माँग है सम्मान व सुरक्षा के अधिकार की। 16 दिसंबर को दिल्ली में घटित गैंगरेप की शर्मनाक घटना ने संपूर्ण देश की आत्मा को झकझोर दिया। दरिंदगी की समस्त सीमाओं के परे इस गैंगरेप ने महिलाओं की सुरक्षा एवं उनके सम्मान के प्रति सरकार, न्याय व्यवस्था एवं पुरूष समाज के विचारों पर कई प्रश्न चिह्न आरोपित कर दिये। राजधानी दिल्ली में अगर महिलाओं की सुरक्षा के दावे ठोकने वाली व्यवस्था पर अपराधी इस कदर तमाचा मार रहे तो अन्य राज्यों से क्या अपेक्षा की जाए! ए. सी. ऑफिस में विराजमान आलाकमान कितने गंभीर हैं सड़क की वास्तविकता के प्रति? क्या व्यवस्था परिवर्तन बलिदान के बिना अपेक्षित नहीं है? क्या इसके लिए किसी न किसी की बलि दी जानी इतनी आवश्यक है? और इस बलि के पश्चात् संवेदनशीलता के प्रमाण एवं न्याय प्राप्ति की क्या गारंटी है?
शायद कुछ भी नहीं। निष्ठुर व्यवस्था से किसी भी संवेदना अथवा दया की आशा करना मूर्खता है। यह शिकायत मात्र व्यवस्था से ही नही है। हमारा समाज भी अभी तक इसी संकीर्ण मानसिकता के अधीन जीवन यापन कर रहा है। जहाँ एक ओर भ्रूण हत्या, दहेज-हत्या, ऑनर किलिंग जैसे अपराध मानव जाति को शर्मसार कर रहे है वहीं दूसरी ओर बलात्कार जैसे निर्मम कुकृत्य पशु जाति को गौरवान्वित कर रहे हैं कि वे मानव नहीं है। इस घटना के प्रति उद्वेलित जनाक्रोश प्रथम दृष्टया सिद्ध करता है कि इंसानियत जीवित है। समाज संवेदनहीनता का समर्थक नही है और हम एक जीवित समाज में विचरण कर रहे है। परन्तु यह भ्रम टूटते अधिक समय नहीं लगा। जब सारा देश इस द्रवित कर देने वाली घटना से उबल रहा है उस समय भी कुछ या कहे बहुत से ऐसे निर्लज उदाहरण समाज में व्याप्त हैं जो इस प्रकार की शर्मनाक घटनाओं के लिए महिलाओं को ही दोषी ठहरा स्वयं को दोषियों के पक्षधर सिद्ध कर रहे हैं। फेसबुक पर एक ऐसे ही प्रोफाइल की सोच ने यह विचारने पर बाधित कर दिया कि इस देशव्यापी प्रदर्शन के मूल मेें कितनी ईमानदारी, सच्चाई, मानवीय मूल्य या संवेदनशीलता निहित हैं? कहीं यह सब भेड चाल तो नहीं? या मात्र एक दिखावा? या कहे कि ऐसे प्रदर्शनों में टीवी चैनलों व समाचार-पत्रों में अपनी तस्वीर देखने का माध्यम? फेसबुक के उस प्रोफाइल ने एक बात तो पूर्णतः स्पष्ट कर दी कि घटना भले ही कितनी भी जघन्य हो जाए परन्तु वह राक्षस प्रवृत्ति को परिवर्तित या शर्मसार नहीं कर सकती। जहाँ बलात्कार पीड़िता की दर्दनाक सच्चाई आँसू लाने के लिए पर्याप्त हैं, वहीं कुछ लोगों की सोच यह भी है कि अगर शेर (पुरूष) की गुफा में बकरियाँ (महिलाएँ) जाकर नाचेंगी तो यही होगा। कितना घिनौना एवं घटिया वक्तव्य है यह! प्रश्न यह है कि ऐसे कृत्यों को अंजाम देने वालों को क्या कहा जाए- शेर या कुत्ता? और क्या महिलाएँ बकरियाँ अर्थात् जानवर हैं? क्या यह विचारधारा शिक्षित समाज के अशिक्षित मस्तिष्क की नहीं है? इस वक्तव्य से एक बात तो सिद्ध हो जाती है कि पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं से सम्मान की अपेक्षा तो दूर की बात है इंसानियत की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। जब उनके लिए महिला का वजूद जानवर तुल्य है तो भला एक जानवर सम्मान का हकदार कैसे हो सकता है? वह तो दुत्कार के भाग्य का स्वामी है। परन्तु दयनीय स्थिति यह है कि जानवर को भी दिन में एक बार प्रेमपूर्वक पुचकार दिया जाता है और बलात्कार जैसे जघन्य कृत्यों से भी वह सुरक्षित है परन्तु दुर्भाग्यशाली महिला जाति इस स्तर पर भी हार जाती है। यह किसी एक व्यक्ति के विचार नहीं है। इस प्रकार के न जाने कितने विचार हमारे आसपास हमें मानव होने पर शर्मसार कर रहे हैं।
शर्मिंदा करने वाले शब्दों का अकाल सा पड़ जाता है जब दिल्ली में हुई इस दर्दनाक बलात्कार की घटना के दो दिन बाद के एक समाचार-पत्र के एक पृष्ठ पर एक राज्य के एक ही क्षेत्र में बलात्कार की नौ घटनाएँ पढ़ने के लिए मिलती हैं। राष्ट्रीय शर्म का विषय है कि एक बेटी के लिए तो न्याय की गुहार अभी न्यायव्यवस्था को जगा भी न सकी थी कि कई और बेटियाँ अपनी सिसकियों में ही दम तोड़ गई। ज़रा सोचिए देशव्यापी आंदोलन की चीखें तो इस राक्षस प्रवृत्ति को व्यत्थित कर न सकी और जब देश शान्त भाव से अपने-अपने घरों में सपने बुन रहा होता है तब इन प्रवृत्ति की तिलमिलाहट किस सीमा तक क्रूर होती होगी? इसके प्रमाण दिल्ली की उस पीड़िता के देह पर प्रदर्शित हो रहे हैं? तो क्या यह आंदोलन क्षणभंगुर है या तत्कालिक परिस्थितियों का दिखावा? यह जनसैलाब शायद न्याय व्यवस्था के कुछ पृष्ठ तो परिवर्तित कर दे परन्तु समाज में व्याप्त उस सोच को कैसे परिवर्तित किया जाए जो इन अशोभनीय घटनाओं की जननी है?
क्या कोई अंत है इन सबका? कैसे लगेगा अंकुश इन सब पर? कैसे सुरक्षित अनुभव करें माँ-बेटी-बहन स्वयं को? क्या कभी ऐसा देश भारत देश हो सकेगा जब महिलाएँ अपने श्वास की ध्वनि से इसलिए न घबराए कि अगर किसी पुरूष ने उस ध्वनि को स्पर्श किया तो वह अपना वजूद खो देंगी? क्या कभी माता-पिता बेटी के जन्म पर निर्भय हो खुशियाँ मना सकेंगे? क्या कभी इस देश के महिलाएँ गर्व से कह सकेंगी कि हम उस देश की बेटियाँ हैं जहाँ हमें न केवल देवी के रूप में पूजा जाता है वरन् वास्तव में उस पूजा की सार्थकता प्रासंगिक है? क्या यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि ऐसी घटनाओं से फिर कभी यह देश लज्जित नहीं होगा?
ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए किसी भी देश की कानून व्यवस्था का सख्त होना अति आवश्यक है। बलात्कार और ऐसी ही क्रूरता से लिप्त एसिड केस, ऐसी घटनाएँ हत्या से भी कहीं अधिक संगीन अपराध है। हत्या व्यक्ति को एक बार मारती है परन्तु ये घटनाएँ न केवल भुक्तभोगी को वरन् उससे सम्बन्धित प्रत्येक रिश्ते को हर पल मारती हैं और जीवन भर मारती हैं। प्रत्येक क्षण होती इस जीवित-मृत्यु की सजा मात्र सात वर्ष पर्याप्त नहीं है। देखा जाए तो मृत्युदंड भी इस अपराध के सम्मुख तुच्छ प्रतीत होता है। कई ऐसे देश हैं जहाँ इस प्रकार की घटनाओं की सजा स्वरूप अपराधी को नपुंसक बना दिया जाता है। शायद यह सजा उसे उसके अपराध का अहसास तो दिला सके परन्तु अगर भुक्तभोगी की सिसकियों से पूछा जाए तो वह कभी इस सजा को उस खौफ के लिए पर्याप्त नहीं मानेगी जो उसके मन में घर कर जाता है। उस अविश्वास को इस सजा से कभी नहीं पुनः प्राप्त कर सकेगी जो समाज के प्रति उसके मस्तिष्क में समा जाता है। उस दर्द की भरपाई यह सजा कभी नहीं कर पाएगी जो उसके कोमल अंगों को मिला है। और इस सजा की तसल्ली उसके आत्मविश्वास के लिए कभी पर्याप्त नहीं हो पाएगी। इस प्रकार के अपराध पर अंकुश लगाने के लिए सिर्फ तालिबानी तरीके ही कारगार साबित हो सकते हैं। ऐसे अपराधियों को ज़मीन में आधा दबाकर पत्थरों से मारा जाना चाहिए जिससे प्रत्येक पत्थर इस प्रकार की मंशा रखने वालों तक की रूह को कँपा सके। जिससे कोई भी दुष्ट विचार उत्पन्न होने से पहले ही अपने अंजाम को सोचने पर मजबूर हो सके।
सच पूछिए तो महिलाओं को संविधान में लिखित अधिकारों में संपत्ति के अधिकार देने से पूर्व सम्मान का अधिकार दिया जाना चाहिए। उन्हें सुरक्षा के अधिकार की आवश्यकता है। खुली हवा में स्वतंत्रतापूर्वक निर्भिक हो मुस्कराने के अधिकार की आवश्यकता है। अगर ये अधिकार उन्हें प्राप्त हो जाए तो असमानता स्वतः समाप्त हो जाएगी। लैंगिक असमानता का प्रश्न अस्तित्वहीन हो जाएगा। इसके लिए आवश्यकता है मानसिक स्तर की परिधि को विस्तृत करने की। संकीर्णता को समाप्त कर स्वतंत्र सोच के विकास की। अकेली महिला को देखकर जो आकर्षण पुरूष महसूस करते हैं उसके पल्लवित होने से पूर्व उस महिला के स्थान पर अपने घर की महिला को रखकर विचार करें। क्या आप अपने परिजनों के साथ किसी प्रकार का अशुभ होने की कल्पना करना चाहेंगे? यदि नहीं, तो त्याग दीजिए प्रत्येक उस विचार को जो दूसरों के घर की बेटियों के प्रति उमड़ता है। वैचारिक शुद्धता एवं पवित्रता ही इस समस्या का समाधान हो सकती है। ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों में अच्छे संस्कार और अच्छी संस्कृति का विकास करे। उन्हें प्रत्येक जाति (स्त्री व पुरूष) का सम्मान करने की शिक्षा दें। नैतिक मूल्यों का हृास किसी भी समाज के अंत का संकेत है और वर्तमान परिस्थितियाँ भारत के संदर्भ में वास्तव में चिन्तनीय हैं।
गुरुवार, 27 दिसंबर 2012
रक्तबीज
आदि-शक्ति देवी दुर्गा की पौराणिक कहानियों के एक दानव की कहानी बहुत प्रसिद्द है.उस दानव का नाम था रक्त बीज.
इस दानव को मारना असंभव सा हो गया था क्योंकि जैसे ही कोई उस दानव पे हथियार से वार करता, दानव के ख़ून की एक एक बूँद से नया दानव बन जाता था.
बिलकुल ऐसा ही एक रक्तबीज फिर से हमारे समाज में लाल रंग के साथ फैला जा रहा है.
राजनीति की भाषा में उस दानव को नक्सलवाद कहते हैं.
सरकार की अपनी राजनितिक मजबूरियों के कारण उस पे हथियार-प्रयोग के अलावा और कोई रास्ता नहीं अपना सकती.
सेक्युलरवाद का प्रदर्शन करने वाली सरकार कभी भी वामपंथ (Left Wing) के प्रति कोई विनम्रता नहीं दिखा सकती. बार बार इन माओवादियों के खिलाफ सेना को लड़ने के लिए भेजा जाता है. सेना उनपे बंदूकें चलाती है और परिणाम क्या निकलता है- ये दानव और बढ़ जाता है. और सैनकों व पुलिस के जवानों को शहीद होना पड़ता है. सचमुच ये एक रक्तबीज है जितना काटोगे उतना बढेगा
आज 300 से ज्यादा जिले नक्सलवाद की हिंसा में जल रहे हैं. आखिर ये लाल रंग की हिंसा, गांधी के देश में आई कहाँ से? क्या होता है नक्सलवाद? क्या होता है माओवाद ? किसे कहते हैं वामपंथी?
इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें इतिहास में बहुत पीछे जाना होगा.
17 वीं सदी में जब महान वैज्ञानिक जेम्स वाट ने भाप के इंजन का अविष्कार किया था तब दुनिया में एक क्रांतिकारी बदलाव आया।
और यहीं से मशीनी युग की शुरुआत हुयी. मशीनी युग के आते ही समाज दो भागों में बंट गया- 1.पूंजीपति वर्ग (Capitalist Class ) और
2.मजदूर वर्ग ( Labor Class )
फैक्ट्रियों से होने वाले बड़े मुफाफे को फिर से नयी फैक्ट्रियों में लगा देने से पूंजीपति वर्ग और अमीर होता चला गया.
मशीनों से बने सामान बहुत सस्ते और अच्छी गुणवत्ता के होने के कारण, हाथ से बने सामानों की बिक्री ख़त्म हो गयी, मजदूर वर्ग और गरीब होता चला गया.
एक तरफ लोगों के हाथ से काम छीन गया और दूसरी तरफ पूंजीपतियों के पास प्रकृति के सभी संसाधनों पे कब्ज़ा करने की ताकत आ गयी.
पूंजीपति वर्ग का ताकतवर हो जाना गैर कानूनी नहीं था, लेकिन किसी एक व्यक्ति के द्वारा पैसों की ताकत से, सारे संसाधनों पे कब्जा कर लेना, जहां दुसरे लोग भूख से मर रहे हों, मानवता की दृष्टि में बिलकुल भी न्यायसंगत नहीं था.
समाज में पैदा हुयी इस दुविधा का हल किसी को नहीं दिखाई दे रहा था. समाज निराशा में डूब गया, वो इस बात से बेखबर था कि अचानक ही करिश्मे का जन्म होने वाला है.
उस करिश्मे का नाम था - कार्ल मार्क्स.
मार्क्स के अनुसार प्रकृति के सभी संसाधनों पे सारे मानवों का बराबर अधिकार है.
कैपिटलिज्म के विरोध में पैदा हुयी ये नयी विचारधारा कम्युनिज्म (कम्युनिस्ठवाद) के नाम से प्रसिद्द हुयी.
पीढ़ी दर पीढ़ी मार्क्स का कम्युनिज्म एक देश से दुसरे देश में फैलता चला गया.
मार्क्स के विचारों को राजनीती में महत्व मिलने लगा.
लेकिन यथार्थ के धरातल पे कैपिटलिज्म अभी भी नहीं हारा था. पैसों की ताकत के आगे विचारों की ताकत बहुत छोटी हो जाती है.
लोगों को लगने लगा था कि कम्युनिज्म सिर्फ कलम से स्थापित नहीं हो सकता.
और इसी के साथ जन्म हुआ कम्युनिज्म की भयानक स्वरुप का- माओत्से तुंग.
चीन में जन्मे विचारक माओत्से तुंग ने कम्युनिज्म को प्रबल करने के लिए हथियार उठाने की अपील की.
माओ के अनुसार कैपिटलिस्ट लोगों की हत्या कर देना ही एक मात्र हल है.
लोगों को माओ की ये बात बहुत ही सही लगी.
माओवाद इतनी तेजी से फैला जितनी तेजी से मार्क्सवाद भी नहीं फैला था.
चीन के निकटवर्ती भारत का उत्तर पूर्व का क्षेत्र भी माओवाद की आग से नहीं बच पाया.
उड़ीसा के एक गाँव नक्सलवाड़ी में आदिवासी माओवादियों ने कई उद्योगपतियों को जिन्दा जला दिया.
ये घटना नक्सलवाद के नाम से जानी गयी. यहीं से वो रक्तबीज भारत में फैलता चला गया.
मुझे यहाँ पे एक पुरानी घटना याद आ रही है. जब नक्सलियों ने एक कलेक्टर का अपहरण कर लिया था. जब वो कलेक्टर रिहा हो के आये तब स्वामी अग्निवेश ने उनसे पूछा- "आपको वहाँ किस तरह रखा जाता था ?"
कलेक्टर ने जवाब दिया- "जैसे मैं अपने घर पे रहता हूँ, मुझे वहां भी वैसे ही रखा जाता था, सभी लोग मुझसे दोस्तों की तरह बात करते थे, साथ बैठ के खाना खाते थे और किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होने देते थे"
स्वामी अग्निवेश ने कहा - "उन नक्सलवादियों को मेरा लाल सलाम"
एक नक्सलवादी भी आम आदमी होता है. उनका मकसद सिर्फ नरसंहार करना नहीं है.
पौराणिक दानव रक्तबीज की समस्या को देवी दुर्गा ने अच्छी तरह समझ लिया था और उसका सही समाधान निकाल लिया था.
उम्मीद है आने वाले समय में हमारी सरकार रक्तबीज पे हथियार उठा कर उसे और विकराल बनाने कि बजाये कोई समझदारी का कदम उठाएगी.
ये समस्या उतनी बड़ी नहीं जितनी हमने बना दी है, वो समय भी आएगा जब पूंजीवादी-अन्याय का हल, नक्सलवाद न हो कर कोई संवैधानिक और मानवीय तरीका होगा.
इस दानव को मारना असंभव सा हो गया था क्योंकि जैसे ही कोई उस दानव पे हथियार से वार करता, दानव के ख़ून की एक एक बूँद से नया दानव बन जाता था.
बिलकुल ऐसा ही एक रक्तबीज फिर से हमारे समाज में लाल रंग के साथ फैला जा रहा है.
राजनीति की भाषा में उस दानव को नक्सलवाद कहते हैं.
सरकार की अपनी राजनितिक मजबूरियों के कारण उस पे हथियार-प्रयोग के अलावा और कोई रास्ता नहीं अपना सकती.
सेक्युलरवाद का प्रदर्शन करने वाली सरकार कभी भी वामपंथ (Left Wing) के प्रति कोई विनम्रता नहीं दिखा सकती. बार बार इन माओवादियों के खिलाफ सेना को लड़ने के लिए भेजा जाता है. सेना उनपे बंदूकें चलाती है और परिणाम क्या निकलता है- ये दानव और बढ़ जाता है. और सैनकों व पुलिस के जवानों को शहीद होना पड़ता है. सचमुच ये एक रक्तबीज है जितना काटोगे उतना बढेगा
आज 300 से ज्यादा जिले नक्सलवाद की हिंसा में जल रहे हैं. आखिर ये लाल रंग की हिंसा, गांधी के देश में आई कहाँ से? क्या होता है नक्सलवाद? क्या होता है माओवाद ? किसे कहते हैं वामपंथी?
इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें इतिहास में बहुत पीछे जाना होगा.
17 वीं सदी में जब महान वैज्ञानिक जेम्स वाट ने भाप के इंजन का अविष्कार किया था तब दुनिया में एक क्रांतिकारी बदलाव आया।
और यहीं से मशीनी युग की शुरुआत हुयी. मशीनी युग के आते ही समाज दो भागों में बंट गया- 1.पूंजीपति वर्ग (Capitalist Class ) और
2.मजदूर वर्ग ( Labor Class )
मशीनों से बने सामान बहुत सस्ते और अच्छी गुणवत्ता के होने के कारण, हाथ से बने सामानों की बिक्री ख़त्म हो गयी, मजदूर वर्ग और गरीब होता चला गया.
एक तरफ लोगों के हाथ से काम छीन गया और दूसरी तरफ पूंजीपतियों के पास प्रकृति के सभी संसाधनों पे कब्ज़ा करने की ताकत आ गयी.
पूंजीपति वर्ग का ताकतवर हो जाना गैर कानूनी नहीं था, लेकिन किसी एक व्यक्ति के द्वारा पैसों की ताकत से, सारे संसाधनों पे कब्जा कर लेना, जहां दुसरे लोग भूख से मर रहे हों, मानवता की दृष्टि में बिलकुल भी न्यायसंगत नहीं था.
समाज में पैदा हुयी इस दुविधा का हल किसी को नहीं दिखाई दे रहा था. समाज निराशा में डूब गया, वो इस बात से बेखबर था कि अचानक ही करिश्मे का जन्म होने वाला है.
उस करिश्मे का नाम था - कार्ल मार्क्स.
मार्क्स के अनुसार प्रकृति के सभी संसाधनों पे सारे मानवों का बराबर अधिकार है.
कैपिटलिज्म के विरोध में पैदा हुयी ये नयी विचारधारा कम्युनिज्म (कम्युनिस्ठवाद) के नाम से प्रसिद्द हुयी.
पीढ़ी दर पीढ़ी मार्क्स का कम्युनिज्म एक देश से दुसरे देश में फैलता चला गया.
मार्क्स के विचारों को राजनीती में महत्व मिलने लगा.
लेकिन यथार्थ के धरातल पे कैपिटलिज्म अभी भी नहीं हारा था. पैसों की ताकत के आगे विचारों की ताकत बहुत छोटी हो जाती है.
लोगों को लगने लगा था कि कम्युनिज्म सिर्फ कलम से स्थापित नहीं हो सकता.
और इसी के साथ जन्म हुआ कम्युनिज्म की भयानक स्वरुप का- माओत्से तुंग.
चीन में जन्मे विचारक माओत्से तुंग ने कम्युनिज्म को प्रबल करने के लिए हथियार उठाने की अपील की.
माओ के अनुसार कैपिटलिस्ट लोगों की हत्या कर देना ही एक मात्र हल है.
लोगों को माओ की ये बात बहुत ही सही लगी.
माओवाद इतनी तेजी से फैला जितनी तेजी से मार्क्सवाद भी नहीं फैला था.
चीन के निकटवर्ती भारत का उत्तर पूर्व का क्षेत्र भी माओवाद की आग से नहीं बच पाया.
उड़ीसा के एक गाँव नक्सलवाड़ी में आदिवासी माओवादियों ने कई उद्योगपतियों को जिन्दा जला दिया.
ये घटना नक्सलवाद के नाम से जानी गयी. यहीं से वो रक्तबीज भारत में फैलता चला गया.
मुझे यहाँ पे एक पुरानी घटना याद आ रही है. जब नक्सलियों ने एक कलेक्टर का अपहरण कर लिया था. जब वो कलेक्टर रिहा हो के आये तब स्वामी अग्निवेश ने उनसे पूछा- "आपको वहाँ किस तरह रखा जाता था ?"
कलेक्टर ने जवाब दिया- "जैसे मैं अपने घर पे रहता हूँ, मुझे वहां भी वैसे ही रखा जाता था, सभी लोग मुझसे दोस्तों की तरह बात करते थे, साथ बैठ के खाना खाते थे और किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होने देते थे"
स्वामी अग्निवेश ने कहा - "उन नक्सलवादियों को मेरा लाल सलाम"
एक नक्सलवादी भी आम आदमी होता है. उनका मकसद सिर्फ नरसंहार करना नहीं है.
पौराणिक दानव रक्तबीज की समस्या को देवी दुर्गा ने अच्छी तरह समझ लिया था और उसका सही समाधान निकाल लिया था.
उम्मीद है आने वाले समय में हमारी सरकार रक्तबीज पे हथियार उठा कर उसे और विकराल बनाने कि बजाये कोई समझदारी का कदम उठाएगी.
ये समस्या उतनी बड़ी नहीं जितनी हमने बना दी है, वो समय भी आएगा जब पूंजीवादी-अन्याय का हल, नक्सलवाद न हो कर कोई संवैधानिक और मानवीय तरीका होगा.
रविवार, 23 दिसंबर 2012
स्वामी श्रद्धानंद - २३ दिसंबर-- बलिदान दिवस
1856 में जालंधर में जन्मे स्वामी श्रद्धानंद को बचपन में ईश्वर पर
आस्था नहीं थी, लेकिन स्वामी दयानंद का प्रवचन सुनकर उनका जीवन बदल गया।धर्म के
सही स्वरूप को महर्षि दयानंद ने जनता में जो स्थापित किया था, स्वामी श्रद्धानंद ने उसे आगे बढ़ाने का निडरता के साथ कदम
बढ़ाया..... स्वामी श्रद्धानंद अपना आदर्श महर्षि दयानंद को मानते
थे....... महर्षि दयानंद ने राष्ट्र सेवा का मूलमंत्र लेकर आर्य समाज की स्थापना
की थी उन्होंने कहा था कि ' हमें और आपको उचित है कि
जिस देश के पदार्थों से अपना शरीर बना,
अब भी पालन होता है, आगे होगा, उसकी उन्नति तन मन धन से सब जने मिलकर प्रीति से करें ' । स्वामी श्रद्धानन्द ने इसी को अपने जीवन का मूल आधार
बनाया।. स्वामी जी ने हरिद्वार में
वैदिक भारतीय संस्कृति पर आधारित गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की..... स्वामी
श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल प्रारंभ करके
देश में पुनः वैदिक शिक्षा को प्रारंभ कर महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो को प्रचार-प्रसार द्वारा कार्यरूप
में परिणित किया.....वेद और आर्ष ग्रंथो के आधार पर महर्षि दयानंद जी ने जिन
सिद्धांतो का प्रतिपादन किया था उन सिद्धांतो को कार्य रूप में लाने का श्रेय स्वामी श्रद्धानंद जी
को जाता है अछूतोद्धार,
शुद्धि, सत्य धर्म के आधार पर
साहित्य रचना, वेद पढने व पढ़ाने की ब्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवकोपार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आदि ऐसे कार्य है जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानंद अनंत काल के लिए अमर हो गए। 4-अप्रैल , 1919 को मुसलमानों ने स्वामी जी को अपना नेता मानकर भारत की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जामा मस्जिद पर आमंत्रित कर के स्वामी
जी का सम्मान किया था। दुनिया की यह पहली
घटना है जहां मुसलमानों ने किसी गैर मुसलिम को किसी मस्जिद से उपदेश देने के लिए कहा। स्वामी जी ने वहाँ अपना उपदेश त्वं हि नः पिता वसो त्वं माता शत् क्रतो बभूविथ वेद मंत्र से
शुरु किया और शांति पाठ के साथ अपने उपदेश को
खत्म किया। उन्होंने जामा मस्जिद से हिंदू और मुसलमानों को सद्भावना का संदेश वेद मंत्रों के साथ
दिया था।
उन्होंने पश्चिम उत्तर प्रदेश के ८९ गावो के मुसलमानों
को पुनः हिन्दू धर्म में शामिल कर समाज
में यह विश्वास जगाया कि जो किसी भी कारण से विधर्मी हो चुके है वो निसंकोच अपने
हिन्दू धर्म में वापस आ सकते है किन्तु राजस्थान के मलकाना क्षेत्र के एक लाख
मुस्लिम राजपूतों द्वारा अपने मूल हिंदू धर्म में वापसी उन्हें भारी पड़ी जिसके
परिणाम स्वरुप एक मदांध युवक अब्दुल रशीद ने 23 दिसंबर 1926 को दिल्ली के चांदनी चौक में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कहा था ' स्वामी श्रद्धानन्द की याद आते ही 1919 का दृश्य आंखों के आगे आ जाता है। सिपाही फ़ायर करने की तैयारी में हैं। स्वामी जी छाती
खोल कर आगे आते हैं और कहते हैं- ' लो, चलाओ गोलियां ' । इस वीरता पर कौन मुग्ध नहीं होगा?
' महात्मा गांधी के अनुसार ' वह वीर सैनिक थे। वीर सैनिक रोग शैय्या पर नहीं, परंतु रणांगण में मरना पसंद करते हैं। वह वीर के समान जीये तथा वीर
के समान मरे ' ।
आज
के समय मे जब बाबा रामदेव जी लुप्त प्राय:योग को जनप्रिय
बना सकते है तब आर्य समाज आगे क्यों नही बढ़
सकता?उसका विस्तार क्यो नही किया जा सकता ?समाज मे इतना पाखंड फैला हुआ है उसको आर्य समाज अपना दुश्मन
क्यो नही बनाता ?आपस मे ही
दुश्मनी क्यो ढ़ूंढी जा रही है ?यह दुश्मनी कब समाप्त होगी ?
यदि स्वामी जी जैसे कुछ लोग भी हमारे पास हों तो इस देश का काया पलट हो सकता है।
आज देश में जिस प्रकार आतंकवाद, अलगाव वाद, संस्कारहीनता
व सामाजिक कुरीतियों का बोलबाला है उनसे लडने के लिए ऐसे महापुरुषों की नितांत आवश्यकता
है। ऐसे महान पुरुष को शत शत नमन .........सोमवार, 17 दिसंबर 2012
महज़ एक छलावा तो नहीं है गरीबी का कम होना??
हमारी सरकार
गरीबी को कम करने के लिए हमेशा स्वयं को सजग दिखाती रही ,समय-समय पर तरह -तरह की योजनाओं का क्रियान्वयन करती रही ,गरीबी की गणना के लिए तरह-तरह की समितियों का गठन करती रही ,लेकिन इन सब के बीच सबसे बड़ा प्रश्न यही है की क्या सरकार वाकई में
प्रतिबद्ध है गरीबी को कम करने के लिए ?क्योंकि कई बार सरकार
द्वारा जारी आंकडें ही इनके क्रियाकलापों की पोल खोलते हैं.NSSO की रिपोर्ट के मुताबिक 1999-2000 में जहाँ देश में
निर्धनता का प्रतिशत 26.1 का तो 2004-05 में यह प्रतिशत घटकर 21.8 रह गया ,लेकिन 2008 में सरकार द्वारा गठित तेन्दुलकर समिति ,जिन्होंने 2009 में रिपोर्ट प्रस्तुत की ,रिपोर्ट के मुताबिक 2004-05 में निर्धनता का प्रतिशत
37.2 था . हाल ही में आमदनी और खर्च संबंधी राष्ट्रीय सैंपल
सर्वेक्षण संगठन [एनएसएसओ] के सर्वे में यह बात सामने आई है कि करीब 60 फीसद ग्रामीण आबादी रोजाना 35 रुपये से भी कम पर
गुजर-बसर करने को मजबूर है। इनमें से भी 10 फीसदी लोगों की
हालत तो और बदतर है। जीने के लिए वे सिर्फ 15 रुपये ही
रोजाना खर्च कर पाते हैं। सरकार तमाम योजनाओं के जरिए गरीबी दूर करने के दावे कर
रही है, लेकिन खुद उसी के आकड़े ही इन दावों की पोल खोल रहे
हैं।
एनएसएसओ की ओर
से जुलाई, 2009 से जून, 2010 के बीच कराए
गए सर्वे के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में
एक व्यक्ति का औसत मासिक खर्च 1,054 रुपये है। वहीं शहरी इलाकों में यह
आकड़ा 1,984 रुपये मासिक है। इस हिसाब से शहरवासी औसतन 66 रुपये रोजाना खर्च
करने में सक्षम हैं। वैसे, 10 फीसद शहरी आबादी भी मात्र 20
रुपये पर गुजारा कर रही है। यह राशि ग्रामीण इलाकों से थोड़ी ही
ज्यादा है।

एनएसएसओ के
अनुमान पर ही योजना आयोग ने शहरी इलाकों में 28.65 रुपये
और ग्रामीण इलाकों में 22.42 रुपये रोजाना कमाने वालों को
गरीबी रेखा से नीचे रखा था। इन आकड़ों पर खूब बवाल मचा था। आयोग के मुताबिक वर्ष 2009-10
में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों [बीपीएल] की संख्या 35.46
करोड़ थी। वर्ष 2004-05 में देश के 40.72
करोड़ लोग इस रेखा से नीचे रह रहे थे।
योजना आयोग की नई
शर्तों के मुताबिक शहरी इलाकों में रोजाना 28 रुपये
से अधिक कमाने वाले और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 22 रुपये
से अधिक आय करने वाले लोग गरीब नहीं है!
इन सबको देखते
हुए मस्तिष्क में एक विचार का आना स्वाभाविक है की कांग्रेस सरकार ने गरीबी आंकलन
के खाद्यान स्तर को बदल के मौद्रिक स्तर क्यों कर दिया ?कहीं इसमें भी तो उसकी कोई साजिश नहीं , क्योंकि
खाद्यान की कीमत तो घटती -बढ़ती रहती है ,जबकि मौद्रिक स्तर अप्रभावित रहता है ,अर्थात सरकार
कुछ न कर पाई तो गरीबों की थाली पे ही दे मारा !गरीबी
आंकलन के लिए जिस ' Minimum Basket Of List' का निर्धारण सरकार ने स्वयं
किया था ,आज वो उसी पे कायम नहीं है !
हाल ही में
दिल्ली की मुख्यमंत्री माननीय शीला दीक्षित जी ने अन्नश्री योजना की शुरुआत करते
हुए कहा कि वो गरीब परिवारों(औसतन 5 व्यक्ति के ) को अनाज के बदले में हर महीने 600 रुपए देंगी। मतलब एक व्यक्ति को खाने के लिए 4 रुपए प्रतिदिन... कितना भद्दा
मज़ाक है शीला दीक्षित का क्यूकी 4 रुपए मे दो समय का खाना तो दूर एक कप चाय भी नहीं
मिलती॥ उन्होनें कहा कि 600 रुपए में एक परिवार के लिए महीने
भर का दाल, चावल और गेहूं तो मिल ही सकता है। लेकिन
प्रश्न ये है की क्या इतने दाम खाद्य पदार्थ मिल जायेगा और अगर मिला भी तो उसकी
गुणवत्ता क्या होगी ? लगता है मुख्यमंत्री
साहिबा ने दो दिन पहले आयी भारत के लोगों की औसत आयु की रिपोर्ट नहीं पढ़ी। उसमें
लिखा है कि भारत के पुरुष 54 और महिलाएं 56 वर्ष की आयु के बाद बीमार रहने लगते हैं। इसका प्रमुख कारण फलों का सही
मात्रा में नहीं मिलना है। रिपोर्ट में लिखा है कि भारतीय बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को पर्याप्त मात्रा में फल नहीं मिल पाते हैं। इस
कारण विटामिन की कमी, कुपोषण, खून की
कमी, हीमोग्लोबिन की कमी, आम है। शीला
दीक्षित के बयान से साफ है कि दिल्ली के गरीबों को सिर्फ खराब क्वालिटी का दाल,
चावल और रोटी खाने का अधिकार है। फल और हरी सब्जियों के बारे में वो
सपने में भी नहीं सोच सकता !
इनसबके पश्चात्
एक प्रश्न सरकार के मंसूबों पर उठना स्वाभाविक है की क्या सरकार वाकई में गरीबी
मिटाना चाहती है या नित्य -नए आंकड़ों द्वारा जनता को भ्रमित करती है !
SORCE : NSSO ,
Planning Commission ,योजना हिंदी पत्रिका !
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012
सर्वशिक्षा अभियान-विद्या ददाति विनयम

"साहित्य , संगीत, कला विहीना ,
साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीना ,
तृणं न खाद्त्रपी जीवमान ,
तद भागदेयम परमं पशुनाम....!!"
साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीना ,
तृणं न खाद्त्रपी जीवमान ,
तद भागदेयम परमं पशुनाम....!!"
सर्वशिक्षा अभियान के रूप में सरकार इसी लक्ष्य पे काम कर रही है ,,इस अभियान का उद्देश्य है उन सभी पिछड़े बच्चों को शिक्षित करना जो कल तक अक्षर और किताबों की दुनिया से अनजान थे !!
मंगलवार, 11 दिसंबर 2012
वेद: महान आविष्कारों के स्त्रोत (Great Inventions of Vedic India)
We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without which no worthwhile scientific discovery could have been made.
-Albert Einstein
हम भारतियों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेंगे जिन्होंने हमें गणना करना सिखाया, उसके बिना किसी वैज्ञानिक आविष्कार का होना संभव नहीं था।
-अलबर्ट आइन्स्टीन
-अलबर्ट आइन्स्टीन
India is the cradle of the human race, the birthplace of human speech, the mother of history, the grandmother of legend and the great grand mother of tradition.
-Mark Twain
भारतभूमि, मानव प्रजाति की पालनकर्ता है, मानवीय वाणी की जन्मस्थली है, इतिहास की माता है, दिव्य-गाथाओं की दादी है और परमपराओं की पर-दादी है।
-मार्क ट्वेन
-मार्क ट्वेन
-French scholar Romain Rolland
-फ़्रांसीसी विद्वान् रोमेन रोलांड
वेदों को सिर्फ किसी धर्म के धर्म-ग्रन्थ मान लेना बहुत बड़ी गलती होगी।
वेदों की रचना उस समय हुयी थी जब विभिन्न सम्प्रदाय हुआ ही नहीं करते थे।
उस समय केवल एक धर्म था सनातन-मानवता का धर्म।
वेदों की रचना उस समय हुयी थी जब विभिन्न सम्प्रदाय हुआ ही नहीं करते थे।
उस समय केवल एक धर्म था सनातन-मानवता का धर्म।
वेद किसी संप्रदाय-विशेष को आध्यात्मिक ज्ञान देने मात्र के ग्रन्थ नहीं हैं।
वेदों में Physics, Chemistry, Mathematics, Cosmology, Biology आदि के विषयों पर अथाह सिद्धांत लिखे हुए हैं।
सवाल ये उठता है की अगर वेदों में इतना ज्ञान है तो ये जग जाहिर क्यों नहीं होता। इसका कारण है वेदों की अत्यंत जटिल भाषा। वेदों में लिखे टेक्स्ट्स को decode करना कितना मुश्लिक काम है ये बात दैनिक भाष्कर की 2012 की इस खबर से साफ़ हो जाता है-Pre-Vedic India knew about DNA: Indore scholar . आज वेदों को decode करने के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं , उनमें से इन्दौर के एक विद्वान् ने वेदों में DNA के वर्णन को सफलतापूर्वक decode करने का दावा किया है। लेकिन वैदिक भारत के कई विद्वानों ने वेदों के बहुत से श्लोकों को समझ कर उन पर न सिर्फ अपनी भाषा में संहितायें लिखी बल्कि उनको व्यावहारिकता में भी लाया।
सवाल ये उठता है की अगर वेदों में इतना ज्ञान है तो ये जग जाहिर क्यों नहीं होता। इसका कारण है वेदों की अत्यंत जटिल भाषा। वेदों में लिखे टेक्स्ट्स को decode करना कितना मुश्लिक काम है ये बात दैनिक भाष्कर की 2012 की इस खबर से साफ़ हो जाता है-Pre-Vedic India knew about DNA: Indore scholar . आज वेदों को decode करने के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं , उनमें से इन्दौर के एक विद्वान् ने वेदों में DNA के वर्णन को सफलतापूर्वक decode करने का दावा किया है। लेकिन वैदिक भारत के कई विद्वानों ने वेदों के बहुत से श्लोकों को समझ कर उन पर न सिर्फ अपनी भाषा में संहितायें लिखी बल्कि उनको व्यावहारिकता में भी लाया।
यहाँ पर मैं वैदिक भारत द्वारा किये गए महान वैज्ञानिक आविष्कारों और उनके आविष्कारकों में से कुछ का वर्णन कर रहा हूँ।
परमाणु सिद्धांत (Atomic Theory):
600 ईसा पूर्व (600 BC) कनद ऋषि ने परमाणु(Atom) का सिद्धांत दिया था। कणद का कथन है कि-
"सभी वस्तुएं परमाणु(Atoms) से बनी हुयी हैं, विभिन्न परमाणु आपस में जुड़ कर अणु(Molecule) का निर्माण करते हैं"
उन्होंने ये कथन John Dalton से 2500 वर्ष पहले दिया था।
इसके आगे कणद परमाणुओं की Dimensions, गतियों और आपस में रासायनिक अभिक्रियाओं(Chemical Reactions) का वर्णन करते हैं।
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Acharya Kanad: Atomic Theory was given in 600 BC |
गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत (Law of Gravity):
400-500 ईसा पूर्व भाष्कराचार्य ने अपनी किताब सूर्य-सिद्धांत में ये कथन लिखा था-
" वस्तुयों का पृथ्वी पे गिरने का कारण, पृथ्वी द्वारा उन पे लगने वाला आकर्षण बल है। पृथ्वी में ये क्षमता उसके अत्यधिक गुरुत्व (Mass) के कारण आती है।"
उन्होंने ये कथन Sir Issac Newton से लगभग 1200 वर्ष पहले दिया था।
सूर्य सिद्धांत में भाष्कराचार्य लिखते हैं-
"पृथ्वी, ग्रह, चंद्रमा, सूर्य आदि इस गुरुत्वाकर्षण के कारण अपने कक्षक में बने रहते हैं"
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Bhashkaracharya: Law of Gravitation was given in 500 BC |
धातुकर्म (Metallurgy):
10वीं सदी में नागार्जुन ने अपनी किताब रसरत्नाकर Rasaratnanakara में बहुत से धातुकर्म विधियों के बारे में लिखा है जैसे:
- विभिन्न धातुओं जैसे सोना,चांदी,तम्बा और टिन का उनके अयस्कों (Ores) से निष्कर्षण।
- द्रवीकरण(liquefaction),आसवन(distillation),उर्ध्वपातन(sublimation) आदि विधियों का वर्णन।
- विभिन्न रस (Liquid Metal) जैसे पारा (Mercury) का निर्माण।
धातुकर्म के क्षेत्र में भारत 5000 वर्षों से अधिक समय तक विश्व-गुरु रहा है।
सोने के आभूषण 3000 BC से पहले उपलब्ध थे।कांसे और पीतल के मिले बर्तनों का अनुमान 1300 BC लगाया गया है।
जस्ता (जिंक) को इसके अयस्क (Ore) से आसवन विधि द्वारा निकालना भारत में 400 BC में ज्ञात था, European William Campion से 2000 वर्ष पहले।
ताम्बे की मुर्तियों की आयु का अनुमान 500 BC लगाया गया है।
दिल्ली में एक लौह स्तम्भ है जो 400 BC पुराना है और उस पर आज तक जंग या क्षय का कोई निशान नहीं है।
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Nagarjuna: Invention of Mettalurgy |
पाइथागोरस प्रमेय या बौद्धायन प्रमेय (Pythagorean Theorem or Baudhayana Theorem):
ईसा से 6 सदी पूर्व बौद्धायन ने अपनी किताब बौद्धायन सुल्ब सूत्र में Baudhayana Sulba Sutra में ये कथन लिखा है:
dīrghasyākṣaṇayā rajjuḥ pārśvamānī, tiryaḍam mānī,
किसी समकोण त्रिभुज में दीर्घ-अक्ष(Hypotenuse) का वर्ग, रज्जू(Base) और पार्श्ववमिनी(Hight) के वर्ग के योग के बराबर होता है।
पाई π का मान (The Value of Pi π):
बौद्धायन ने वृत की परिधि और व्यास का अनुपात 3 बताया था।लेकिन उनके बाद 499 AD में आर्यभट्ट ने π के मान की गणना दशमलव के 4 स्थान तक की (3.1416).
शून्य की अवधारणा (The Concept of 'Zero'):
Zero की अवधारणा शुरूआती संस्कृत लेखों में 'शून्य' के रूप में आती है और पिंडाला के 'चंदा: सूत्र' (200 AD) में भी समझायी गयी है। भ्रह्मगुप्त के 'ब्रह्म फुता सिद्धांत' (400 AD) में शून्य को विस्तार से समझाया गया है। भारतीय गणितज्ञ भाष्कराचार्य ने सिद्ध किया की X को 0 से विभाजित करने पर अनंत (Infinty) आता है जिसको फिर कितना ही विभाजित करें अनंत ही रहता है।
लेकिन शून्य के महत्व के आविष्कार का श्रेय आर्यभट्ट को जाता है।
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Aryabhatt: Great Mathemeticial, who has given Concept of Decimal and Zero |
दशमलव प्रणाली (Decimal System):
दशमलव के आविष्कार का भी मुख्य श्रेय आर्यभट्ट को दिया जाता है। उन्होने हर गणना का आधार 10 को बनाया जिस से बड़ी से बड़ी संख्या भी 10 की घात के रूप में आसानी से व्यक्त की जाने लगीं।
गणित की वैदिक जडें (Vedic roots of Mathematics):
अंग्रेजी का शब्द Geometry संस्कृत के शब्द 'ज्यामिति' से आया हुआ है।जिसका अर्थ होता है 'पृथ्वी का मापन'.
इसी तरह से अंग्रेजी का शब्द 'Trignometry' भी संस्कृत के शब्द 'त्रिकोणमिति' से बना है।
युक्लिड का निर्माण 300 BC में Geometry के अविष्कार के बाद हुआ जबकि भारत में ज्यामिति का उद्भव 1000 BC में ही आग वेदियों (fire altars) के निर्माण से हो गया था "चतुर्भुज में वर्ग का निर्माण".
सूर्य सिद्धांत में त्रिकोणमिति का प्रखर वर्णन किया है, जो कि 1200 साल बाद यूरोप में 1600 इसवी में Briggs द्वारा दिया गया।
भाष्कराचार्य ने 1150 AD में अपनी प्रसिद्ध किताब 'सिद्धांता-सिरोमन' लिखी,जिसके चार भाग हैं:
- लीलावती(Arithmetic)
- गोलाध्याय (Celestial Glob)
- बीजगणित (Treatise of Algebra)
- ग्रहगणित (Mathematics of Planets)
भारत से ही sinƟ funtion 8वीं सदी में अरब में पहुँचा। भारत में sinƟ को 'ज्या' कहते थे जो कि अरब में Jiba / Jyb में अनुवादित हो गया। अरबी में Jaib शब्द का मतलब होता है महिला-पोशाक का गले के पास से खुला होना, Jaib शब्द का लैटिन में अनुवाद हुआ Sinus, जिसका अर्थ होता है पोशाक में तह या Curve. और इस प्रकार अंत में Sine (sinƟ) शब्द बना।
10 की घात 53 की गणना (Raising 10 to the Power of 53!):
आज की गणित में 10 की अधिकतम घात के लिए उपसर्ग (Prefix) है- 'D' दस की घात 30 (from Greek Deca).
जबकि 100 BC पहेल भारतियों ने 10 की घात 53 तक के लिए सटीक नामों का आविष्कार कर लिया था।
1= एकं =1, 10 था दशकं , 100 था शतं (10 to the power of 10), 1000 tha सहस्रं (10 power of 3), 10000 था दशासहस्रम (10 power of 4), 100000 था लक्शः (10 power of 5), 1000000 था दशालक्शः (10 power of 6), 10000000 था कोटिः (10 power of 7)……विभुतान्गामा (10 power of 51), तल्लाक्षनाम (10 power of 53).
अंकों को शब्दों में व्यक्त करना (The Word-Numeral System):
word-numeral system, अंक को 10 के गुणांक के रूप में लिखते हुए आगे बढ़ता है। जैसे संख्या 60799 को संस्कृत में इस तरह लिखते हैं-
"सस्टीम सहस्र सप्त सतानी नवाटीम नवा"
(sastim (60), shsara (thousand), sapta (seven) satani (hundred), navatim (nine ten times) and nava (nine))
इस system के नियम इस प्रकार है:
1.शुरू के नौ अंकों के नाम-eka, dvi, tri, catur, pancha, sat, sapta, asta, nava
2.अगले नौ अंको का समूह, उपर्युक्त प्रत्येक अंक को 10 से गुना करके प्राप्त होता है-dasa, vimsat, trimsat, catvarimsat, panchasat, sasti, saptati, astiti, navati
3. इसी प्रकार अगला समूह 10 के अगले गुणांक के रूप में प्राप्त होता है-satam sagasara, ayut, niyuta, prayuta, arbuda, nyarbuda, samudra, Madhya, anta, parardha….
सभी ग्रहों की कक्षाओं का केंद्र सूर्य (Heliocentric Solar System):
प्राचीन भारतीय वो पहले लोग थे जिन्होंने सूर्य के Heliocentric System का सुझाव दिया.
उन्होंने प्रकाश का वेग 1,85,016 miles/sec परिकलित किया.
उन्होंने पृथ्वी का चन्द्रमा के बीच की दूरी भी परिकलित की- चन्द्रमा के व्यास का 108 गुना.
पृथ्वी और सूर्य के मध्य दूरी का अनुमान लगाया- पृथ्वी के व्यास का 108 गुना.
ये सब बातें महान वैज्ञानिक गैलिलिओ से हजारों साल पहले की हैं.
उन्होंने प्रकाश का वेग 1,85,016 miles/sec परिकलित किया.
उन्होंने पृथ्वी का चन्द्रमा के बीच की दूरी भी परिकलित की- चन्द्रमा के व्यास का 108 गुना.
पृथ्वी और सूर्य के मध्य दूरी का अनुमान लगाया- पृथ्वी के व्यास का 108 गुना.
ये सब बातें महान वैज्ञानिक गैलिलिओ से हजारों साल पहले की हैं.
पृथ्वी को सूर्य-कक्षा में लगाने वाला समय (Time taken for Earth to orbit Sun):
भारतीय गणितग्य भाष्कराचार्य ने अपने निबंध सूर्य-सिद्धांत में, पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय का दशमलव के नौंवें स्थान तक सही मान बताया (365.258756484 दिन).
भाष्कराचार्य के सैकड़ों वर्ष बाद 5वीं में astronomer Smart ने इसी मान की गणना की।
समय मापन: सेकंड के 34000वें भाग से लेकर 4.32 अरब वर्ष तक की गणना (34000th of a Second to 4.32 Billion Years):
समय की गणना के लिए प्राचीन भारतीयों ने दुनिया को समय की सबसे छोटी इकाई से लेकर सबसे बड़ी इकाई प्रदान की:
Unit | Equivalent | Equivalent |
Krati | 34,000th of a second | |
1 Truti | 300th of a second | |
2 Truti | 1 Luv | |
2 Luv | 1 Kshana | |
30 Kshana | 1 Vipal | |
60 Vipal | 1 Pal | |
60 Pal | 1 Ghadi | 24 minutes |
2.5 Gadhi | 1 Hora | 1 Hour |
24 Hora | 1 Divas | 1 Day |
7 Divas | 1 Saptaah | 1 Week |
4 Saptaah | 1 Maas | 1 Month |
2 Maas | 1 Rutu (season) | |
6 Rutu | 1 Varsh | 1 Year |
100 Varsh | 1 Shataabda | 1 Century |
10 Shataabda | 1 Sahasraabda | 10 Centuries or 1000 Years |
432 Sahasraabda | 1 Yuga | 4320 Centuries or 432000 Years |
10 Yuga | 1 Mahayuga | 43200 Centuries or 4320000 Years |
1000 Mahayuga | 1 Kalpa | 43200000 Centuries or 4.32 Billion Years |
प्राचीनतम काल-गणना (Indian Kālagaņanā (chronologies) is the Oldest in the World!):
भारतीय काल गणनाओं में तीन chronologies आज तक प्रचलित है:
- कलिय्ब्दा: जो कलियुग के शुरू होने के साथ शुरू होती है, यानी 5107 वर्ष पुरानी।
- कल्पब्दा: जो वर्तमान कल्प "श्वेतवर कल्प" के शुरुआत के साथ शुरू होती है यानी 1,971,221,107 वर्ष पुरानी।
- सृश्ब्द: जो ब्रह्माण्ड के निर्माण के साथ शुरू होती है यानी 155,521,971,221,107 वर्ष पुरानी।
अभी बहुत सी ऐसी काल-गणना प्रणालियाँ हैं जो इसाई क्रोनोलोज़ी से बहुत पुरानी हैं:
Chronology | Antiquity in years |
Roman | 2,753 |
Greek | 3,576 |
Turkish (new) | 4,294 |
Chinese (new) | 4,360 |
Hindu (Kalyabda) | 5,106 |
Jewish | 5,764 |
Iran (new) | 6,008 |
Turkish (old) | 7,610 |
Egyptian | 28,667 |
Iran (old) | 189,971 |
Chinese (old) | 96,002,301 |
Hindu (Kalpābda) | 1,971,221,106 |
Hindu (Sŗşābda) | 155,521,971,221,106 |
दुनिया का पहला डॉक्टर: चरक संहिता (Charaka Samhita: World’s first physician):
पश्चिम में Hippocrates (460 – 377 BC) को Father of Medicine कहा जाता है लेकिन उनसे पहले 500 BC में महर्षि चरक ने एक प्रसिद्ध किताब 'चरक संहिता' लिखी थी। चरक-संहिता विस्तार से 8 मुख्य चिकित्सीय नियमों का वर्णन करती है -
- आयुर्वेद
- शल्य-चिकित्सा (surgery)
- शालक्य-चिकित्सा (head, eye, nose, throat)
- काया-चिकित्सा (mental health)
- कौमार्यभ्रुत-चिकित्सा (pediatrics)
- अगाड़-चिकित्सा (toxicology)
- रसायन तंत्र (Pharmacology)
- वाजीकर्ण तंत्र (reproductive medicine)
इसके अलावा चरक ने अपनी किताब चरक-संहिता में Anatomy की जानकारी भी बहुत विस्तार से लिखी ,जिसमें ह्रदय और परिसंचरण तंत्र की कार्य-प्रणाली का विस्तृत वर्णन सम्मिलित है।
चरक को अरब और roman दोनों जगहों पे medical authority के रूप में सम्मान मिलता है।
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Acharya Charak: Worlds first Physician |
शल्य-चिकित्सा: 300 प्रकार की शल्य-क्रियाएं और 25 प्रकार के शल्य उपकरण (Surgery: 300 different types Operations, and 125 Surgical Instruments):
भारतीय विद्वान वो पहले लोग थे जिन्होंने विच्छेदन (amputation),सिजेरियन(cesarean surgery) और कपाल शल्य(cranial surgery) को व्यवहारिकता में लाया।
महर्षि सुश्रुत ने सर्वप्रथम 600 BC में गाल की त्वचा का उपयोग नाक,कान ,होंठ के आकार को ठीक करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी (plastic surgery) में किया।
उन्होंने अपने निबंध सुश्रुत-संहिता में निम्न 8 प्रकार की शल्य चिकित्सायों का वर्णन किया है:
1.आहार्य (extracting solid bodies),
2.भेद्य (excision),
3.इश्य (probing),
4.लेख्य (sarification),
5.वेध्य (puncturing),
6.विस्राव्य (extracting fluids)
7.सिवया (suturing)
सुश्रुत ने 300 से भी ज्यादा शल्य क्रियाओं जैसे extracting solid bodies, excision, incision, probing, puncturing, evacuating fluids and suturing का अविष्कार किया।
भारतीय वे पहले लोग थे जिन्होंने amputations (ख़राब अंग को ऑपरेशन से अलग करना), caesarean (ऑपरेशन से प्रसव कराना), cranall surgeries (खोपड़ी का ऑपरेशन) 42 विधियों से सफलता पूर्वक किया। उन्होंने 125 प्रकार के शल्य उपकरणों का उपयोग किया जैसे scalpels, lancets, needles, catheters आदि।
यहाँ तक कि सुश्रुत ने non-invasive surgical treatments (बिना चीर-फाड़ के ऑपरेशन) , प्रकाश किरणों और ऊष्मा की सहायता से किया।
सुश्रुत और उनकी टीम ने जटिल operatios जैसे मोतियाबिंद(cataract), कृत्रिम अंग(artificial limbs), प्रसव(cesareans), अस्थि-भंग(fractures), मूत्राशय की पथरी(urinary stones), प्लास्टिक सर्जरी (plastic surgery) और मस्तिष्क सर्जरी(brain surgeries) भी किये।
चाणक्य के 'अर्थशास्त्र' में पोस्ट-मोरटम(Post mortems) और 'भोज-प्रबंध' में मस्तिष्क सर्जरी(brain surgeries) के बारे में लिखा है कि राजा भोज 2 surgeons ने कैसे मस्तिष्क की गाँठ का सफलता पूर्वक शल्य उपचार किया।
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Acharya Sushrut: Worlds first Surgen |
योग: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Yoga - Health of the Body and Mind):
महर्षि पतंजलि ने योग-सूत्र में, स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक और मानसिक व्यायाम की विपुल विधियां बतायीं।
व्यायाम से परे योग का अर्थ होता है स्व-अनुशासन।
महर्षि पतंजलि के अनुसार मानव के शरीर में कई मार्ग(channels) होते हैं जिन्हें 'नाड़ी' कहते हैं और कई केंद्र होते हैं जिन्हें 'चक्र' कहते हैं। यदि इन पर नियंत्रण पा लिया जाये तो शरीर में छिपी ऊर्जा निखर आती है, इस उर्जा को कहते हैं 'कुंडलीनी'.
कुंडलीनी के जागरण से वो शक्तियां भी हमारे अन्दर आ जाती है जो सामान्य मनुष्य के वश के बाहर होती हैं।
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Acharya Patanjali |
योग के चरण:(Stages of Yoga)
- यम (universal moral commandments)
- नियम (self-purification through discipline)
- आसन (posture)
- प्राणायाम (breath-control)
- प्रत्याहार (withdrawal of mind from external objects)
- धारणा (concentration)
- ध्यान (meditation)
- समाधी (state of super-consciousness)
आयुर्वेद: दीर्घायु की विज्ञान (Ayurveda - the Science of Longevity):
आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ होता है: आयु-LIfe , वेद -Knowledge.
अन्य उपचार पद्धतियों की तरह आयुर्वेद 'रोग के लक्षण' पर काम नहीं करता बल्कि 'रोग के कारण' को दूर करने पे काम करता है।
आयुर्वेद में अनेक प्रकार की प्राकृतिक औषधियां आती है। आयुर्वेद में सरल से लेकर जटिल रोगों के समूल इलाज के लिए असंख्य जड़ी बूटियों का वर्णन है।
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Ayurved |
भरतनाट्यम (Bharatanatyam):
भरतनाट्यम सबसे पुरानी नृत्य कला (the oldest of the classical dance forms of India) है।लगभग 2000 वर्ष पुरानी।
भरतनाट्यम से ही अन्य सभी प्रकार की नृत्य कलाओं का जन्म हुआ।
संगीत,अभिनय,काव्य,प्रतिमा-रूपण,साहित्य के अनुपन संयोजन वाली ये कला हजारों वर्षों से शरीर, मन और आत्मा को अभिव्यक्त करने का मंचन करती रही है।
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Bharatnatyam |
मार्शल आर्ट्स की माता (Mother of Martial Arts):
बोद्धिधर्मा, एक भारतीय बौद्ध भिक्षुक ने 5वीं सदी में 'कलारी' को जापान और चीन में प्रचलित किया। उन्होंने अपनी विद्या के मंदिर में सिखाई उस मंदिर को आज Shaolin Temple कहते हैं।
चीन के लोग उन्हें पो-टी-तामा बुलाते थे।उनकी सिखाई विद्या भविष्य में कराटे, जुडो और कुंग फू के नाम से विकसित हुयी।
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Martial Art |
प्रभावशाली अस्त्र विद्या (Advanced Weaponology):
विभिन्न ग्रंथों में जगह जगह पर बहुत सारे अस्त्र-सस्त्र का वर्णन आता है जैसे:
- इन्द्र अस्त्र
- आग्नेय अस्त्र
- वरुण अस्त्र
- नाग अस्त्र
- नाग पाशा
- वायु अस्त्र
- सूर्य अस्त्र
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ब्रह्मास्त्र ऐसा अस्त्र है जो अचूक होता है।
ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।
संरचना:
चतुर्दिश अस्त्र:
२.तीर की नोक से थोडा पीछे चार छोटे तीर लगे होते हैं उनके भी पश्च सिरे पे बारूद लगा होता है.
कार्य-प्रणाली:
२.उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पे लगा बारूद जलने लगता है और इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.
३.और तीसरे चरण में तीर की नोक पे लगे, 4 छोटे तीरों पे लगा बारूद भी जल उठता है और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.
दिशा-ज्ञान की प्राचीन जडें (Ancient root of Navigation):
navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था। अंग्रेजी शब्द navigation, संस्कृत से बना है: navi -नवी(new); gation -गतिओं(motions).
मोक्ष्यपातं: सांप-सीढी का खेल (Mokshapat: Snake and Ladder had its origin in India):
सांप-सीढ़ी का खेल भरत में 'मोक्ष पातं' के नाम से बच्चों को धर्म सिखाने के लिए खेलाया जाता था।
जहां सीढ़ी मोक्ष का रास्ता है और सांप पाप का रास्ता है।
इस खेल की अवधारणा 13वीं सदी में कवि संत 'ज्ञानदेव' ने दी थी।
मौलिक खेल में जिन खानों में सीढ़ी मिलती थी वो थे- 12वां खाना आस्था का था, 51वां खाना विश्वास का, 57वां खाना उदारता का, 76वां ज्ञान का और 78वां खाना वैराग्य का था।
और जीन खानों में सांप मिलते थे वो इस प्रकार थे- 41 वां खाना अवमानना का, 44 वां खाना अहंकार का, 49 वां खाना अश्लीलता का, 52 वां खाना चोरी का, 58 वां खाना झूठ का, 62 वां खाना शराब पीने का, 69 वां खाना उधर लेने का, 73 वां खाना हत्या का , 84 वां खाना क्रोध का, 92 वां खाना लालच का, 95 वां खाना घमंड का ,99 वां खाना वासना का हुआ करता था। 100वें खाने में पहुचने पे मोक्ष मिल जाता था।
पांसा (Dice):
काफी पुराने पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं जिसमें हड़प्पा की खुदाई में कई स्थानों पर (Kalibangan, Lothal, Ropar, Alamgirpur, Desalpur and surrounding territories) Oblong (लम्बे) पांसे मिले हैं। उनमें से कुछ ईसा से 3 सदी पहले के हैं। पांसों के प्रमाण ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलते हैं।
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A die found in excavations at a Harappan period site. Note that the six is not opposite the one |
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Krishna and Radha playing chaturanga on an 8x8 Ashtāpada |
शतरंज का खेल (The Game of Chess):
शतरंज के खेल का अविष्कार भारत ने किया था , इसका मौलिक नाम 'अष्ट-पदम्' था।
उसके बाद आज से 1000 साल पहले ये खेल 'चतुरंग' नाम से खेला जाने लगा और फिर 600 AD में Persians के द्वारा इसका नाम शतरंज रखा गया।
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Map showing origin and diffusion of chess from India to Asia, Africa, and Europe, and the changes in the native names of the game in corresponding places and time |
ताश का खेल (The Game of Cards):
ताश के खेल की शुरुआत भारत में हुयी थी उसका मूल नाम 'क्रीडा पत्रं' था।
पत्ते कपड़ों के बने होते थे जिन्हें गंजिफा कहा जाता था। ये एक शाही खेल था, इस मूल खेल में कई परिवर्तन होते गए और आज का 52 पत्तों वाला खेल निष्काषित हुआ।
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Krida-Patram |
इन महान देनों के साथ साथ वेद प्राचीन भारत की सुव्यवस्थित सभ्यता के प्रमाण भी हैं।
मानव पुस्तकालय में प्राचीनतम किताब ऋग्वेद (The oldest book in the library of humans is the Rigveda)
विश्व की सबसे पहली सभ्यता (The Worlds Oldest Living Civilization)
प्राचीनतम सुव्यवस्थित भाषा (Oldest Systematic Language)
श्रुति को UNESCO द्वारा धरोहर घोषित करना (Oral tradition of Vedic Chanting is declared an intangible heritage of humanity by UNESCO)
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