रविवार, 23 दिसंबर 2012



स्वामी श्रद्धानंद - २३ दिसंबर-- बलिदान दिवस

1856 में जालंधर में जन्मे स्वामी श्रद्धानंद को बचपन में ईश्वर पर आस्था नहीं थी, लेकिन स्वामी दयानंद का प्रवचन सुनकर उनका जीवन बदल गया।धर्म के सही स्वरूप को महर्षि दयानंद ने जनता में जो स्थापित किया था, स्वामी श्रद्धानंद ने उसे आगे बढ़ाने का निडरता के साथ कदम बढ़ाया..... स्वामी श्रद्धानंद अपना आदर्श  महर्षि दयानंद को मानते थे....... महर्षि दयानंद ने राष्ट्र सेवा का मूलमंत्र लेकर आर्य समाज की स्थापना की थी उन्होंने कहा था कि ' हमें और आपको उचित है कि जिस देश के पदार्थों से अपना शरीर बना, अब भी पालन होता है, आगे होगा, उसकी उन्नति तन मन धन से सब जने मिलकर प्रीति से करें ' । स्वामी श्रद्धानन्द ने इसी को अपने जीवन का मूल आधार बनाया।. स्वामी जी ने हरिद्वार में वैदिक भारतीय संस्कृति पर आधारित गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की..... स्वामी श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल प्रारंभ करके देश में पुनः वैदिक शिक्षा को प्रारंभ कर महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो को प्रचार-प्रसार द्वारा कार्यरूप में परिणित किया.....वेद और आर्ष ग्रंथो के आधार पर महर्षि दयानंद जी ने जिन सिद्धांतो का प्रतिपादन किया था उन सिद्धांतो को कार्य रूप में लाने का श्रेय स्वामी श्रद्धानंद जी को जाता है  अछूतोद्धार, शुद्धि, सत्य धर्म के आधार पर साहित्य रचना, वेद पढने व पढ़ाने की ब्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवकोपार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आदि ऐसे कार्य है जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानंद  अनंत काल के लिए अमर हो गए। 4-अप्रैल , 1919 को मुसलमानों ने स्वामी जी को अपना नेता मानकर भारत की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जामा मस्जिद पर आमंत्रित कर के स्वामी जी का सम्मान किया था। दुनिया की यह पहली घटना है जहां मुसलमानों ने किसी गैर मुसलिम को किसी मस्जिद से  उपदेश देने के लिए कहा। स्वामी जी ने वहाँ अपना उपदेश त्वं हि नः पिता वसो त्वं माता शत् क्रतो बभूविथ वेद मंत्र से शुरु किया और शांति पाठ के साथ अपने उपदेश को खत्म किया। उन्होंने जामा मस्जिद से हिंदू और मुसलमानों को सद्भावना का संदेश वेद मंत्रों के साथ दिया था।
उन्होंने पश्चिम उत्तर प्रदेश के ८९ गावो के मुसलमानों को पुनः हिन्दू धर्म में शामिल कर समाज में यह विश्वास जगाया कि जो किसी भी कारण से विधर्मी हो चुके है वो निसंकोच अपने हिन्दू धर्म में वापस आ सकते है किन्तु राजस्थान के मलकाना क्षेत्र के एक लाख मुस्लिम राजपूतों द्वारा अपने मूल हिंदू धर्म में वापसी उन्हें भारी पड़ी जिसके परिणाम स्वरुप एक मदांध युवक अब्दुल रशीद ने 23 दिसंबर 1926 को दिल्ली के चांदनी चौक में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कहा था ' स्वामी श्रद्धानन्द की याद आते ही 1919 का दृश्य आंखों के आगे आ जाता है। सिपाही फ़ायर करने की तैयारी में हैं। स्वामी जी छाती खोल कर आगे आते हैं और कहते हैं- ' लो, चलाओ गोलियां ' । इस वीरता पर कौन मुग्ध नहीं होगा?
' महात्मा गांधी के अनुसार ' वह वीर सैनिक थे। वीर सैनिक रोग शैय्या पर नहीं, परंतु रणांगण में मरना पसंद करते हैं। वह वीर के समान जीये तथा वीर के समान मरे '
आज के समय मे जब बाबा रामदेव जी लुप्त प्राय:योग को जनप्रिय बना सकते है तब आर्य समाज आगे क्यों नही बढ़ सकता?उसका विस्तार क्यो नही किया जा सकता ?समाज मे इतना पाखंड फैला हुआ है उसको आर्य समाज अपना दुश्मन क्यो नही बनाता ?आपस मे ही दुश्मनी क्यो ढ़ूंढी जा रही है ?यह दुश्मनी कब समाप्त होगी ?
यदि स्वामी जी जैसे कुछ लोग भी हमारे पास हों तो इस देश का काया पलट हो सकता है। आज देश में जिस प्रकार आतंकवाद, अलगाव वाद, संस्कारहीनता व सामाजिक कुरीतियों का बोलबाला है उनसे लडने के लिए ऐसे महापुरुषों की नितांत आवश्यकता है। ऐसे महान पुरुष को शत शत नमन .........