शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011




जिसे आँख से नहीं देखा जाता अपितु जिससे आँख देखती है तू उसी को ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर और जो उससे भिन्न सूर्य,विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ हैं  उनकी उपासना मत कर |
 -------- महर्षि दयानंद सरस्वती (सत्यार्थप्रकाश)
वेदों का ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए है। वेदों में गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर समाज को चार वर्णो में बांटा गया है। जिस तरह से शरीर के सभी अंगों की उपयोगिता है, उसी तरह से समाज रूपी शरीर के ये चारों अंग अपने आप में उपयोगी और पूरक हैं। वेदों की सबसे बडी विशेषता यह है, इसकी वाणी आम बोल-चाल की भाषा कभी नहीं रही, इसलिए इसमें कोई क्षेपक नहीं हो सकती। वेदों में धर्म, अर्थ, काम मोक्ष प्राप्त करने के ज्ञान के अलावा समाज, विज्ञान, साहित्य, गृह निर्माण, उद्योग-धंधे, चिकित्सा, औषधि, गणित, शासन, सैन्य, सुरक्षा, शिक्षा, भाषा विज्ञान, भूतत्व,अग्नि, विमान, जल, वायु, वृष्टि, यजन और याज्ञिक पर्जन्य सहित अनगिनत तरह की विद्याएं दी गई हैं। वेदों की जो सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है, वह है इसका रहस्यवाद। परमात्मा के बारे में जिस तरह से एकमत होकर कुछ नहीं कहा जा सकता है, उसी तरह परमात्मा की वाणी होने की वजह से इसका कोई एक अर्थ नहीं निरूपित किया जा सकता है। इसलिए आज तक जितने भाष्यकारहुए हैं सबने इनके अलग-अलग अर्थ किए हैं, और सृष्टि में आगे भी वेदों के बारे में कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वेद मंत्रों के बस यही अर्थ होंगे। एक बात जो सबसे अधिक ध्यान देने की है वेदों में जो लोग आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ढूंढते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि वेदों की रचना महज किसी विशेष काल खण्ड को ध्यान में रख कर नहीं हुई, बल्कि जब तक यह सृष्टि चलती रहेगी तब तक वेद ज्ञान उपयोगी और ज्ञान-विज्ञान के सूत्र बताते रहेंगे। दरअसल वेद के मंत्रों में जो ज्ञान दिया गया है वह मनुष्य के विभिन्न आवश्यकताओं और उपयोगिताओंको ध्यान में रखकर दिया गया है। वेद के बारे में अक्सर यह सवाल उठाया जाता है कि आज जबकि मनुष्य ज्ञान-विज्ञान के बारे में काफी ऊंचाई तय कर चुका है, ऐसे में वेद किस तरह उपयोगी हैं? इसका एक सहज जवाब है-वेदों में जो जीवन के सूत्र हैं दुनिया के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं।
वेदों में जो मानवीय मूल्य हैं विश्व के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं। ये दो बातें ही दुनिया के किसी भी पुस्तक के बडे से बडे ज्ञान से भारी हैं।
 -------------साभार अखिलेश आर्येदु

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर ज्ञान...वेदों के मूल्य एवं ज्ञान निर्विवाद हैं..मगर इसे सामान्यीकृत करके सामान्य मानस तक पहुचना जरुरी है...

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