ऊ खुद आपन सीनवा में
छुपावत रहि गईल
जिनगी भर
गमे के पहाड़
बकिन तै हमके कईले बडियार
हँसाई हँसाई के
तनिको न होखे देहले
ई बात के एहसास
ऊ रोई रोई के भी
अगर हंसल तै
खाली हमके हंसावय खातिन
जब जब हम गिरत रहनी
छोड़ी देति रहल ऊ माई
बिलकुल हमके अकेल
हर दाई हम कोशिश कईनीं
उठी के खड़ा भईले के
अउर जब जब हम
उठी के खड़ा भईनीं
ऊ हमार पियार से
माथा चुमि लेत रहल
अउर आज अगर हम खड़ा बानी तै
खाली ऊ माई के बदौलत
सच्चो में ई पियार आज सालन बाद भी
नईखे भूलाला ।।
सही बात कहल ह उपेन्द्र भाई
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