शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

माई


ऊ खुद आपन सीनवा  में 
छुपावत  रहि गईल 
जिनगी भर 
गमे के पहाड़ 
बकिन तै हमके कईले बडियार
हँसाई हँसाई के
तनिको न होखे देहले
ई बात के एहसास
ऊ रोई रोई के भी
अगर हंसल तै 
खाली हमके हंसावय  खातिन
जब जब हम गिरत रहनी 
छोड़ी देति रहल ऊ माई
बिलकुल हमके  अकेल
हर दाई हम  कोशिश कईनीं
उठी के खड़ा भईले के
अउर  जब  जब हम
उठी के  खड़ा भईनीं
ऊ हमार पियार से 
माथा चुमि लेत रहल 
अउर आज अगर हम खड़ा बानी तै
खाली ऊ माई के बदौलत
सच्चो में ई पियार आज सालन बाद भी
नईखे भूलाला ।।

                        ( उपेन्द्र नाथ )

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