मंगलवार, 24 अप्रैल 2018
सोमवार, 23 अप्रैल 2018
आर्य समाज हिन्दू विरोधी कैसे ??
आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्यसमाज नहीं मानता कि श्रीकृष्ण जी माखन चोर थे, गौएँ चराते थे, गोपियों संग रास रचाते थे, राधा के संग प्रेम प्रसंग में लिप्त थे, कुब्जा दासी के साथ समागम किया था। या वे ईश्वर का अवतार थे ।
अधिकांश सनातन धर्म अनुयायी जन द्वारकाधीश योगेश्वर श्रीकृष्ण को छोड़कर, पार्थसारथी-योगेश्वर श्रीकृष्ण को भूलकर माखनचोर व राधा के साथ रमण करने वाले राधारमण के पीछे पड़े हैं। लोग श्रीकृष्ण के 'विश्वरूप' को भी पसंद नहीं करते उन्हें तो 'राधा माधव' वाली राधा रमण वाली काल्पनिक छवि ही पसन्द आती है।
लेकिन आर्य समाज इन सब काल्पनिक बातों पर बिल्कुल विश्वास नही करता। ये सब कपोल कल्पित घटनाएं हैं जो कि भक्ति की अतिरेक में लिखी गयी है। जो श्रीकृष्ण जी के चरित्र को और धूमिल ही करती हैं।
बल्कि आर्य समाज ये मानता है कि श्रीकृष्ण जी जन्म से लेकर ४८ वर्ष की उम्र तक ब्रह्मचारी थे जैसा कि महाभारत में वर्णित है। उनकी सिर्फ एक पत्नी रुक्मणी थी जिनसे विवाह करके भी उसके साथ विष्णु पर्वत पर उपमन्यु ऋषि के आश्रम में १२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य तप करके अपने समान तेजस्वी पुत्र प्रद्युम्न को पैदा किया। एक महान योगेश्वर होने की वजह से वे नित्य ईश्वर उपासना, प्राणायाम, संध्या, अग्निहोत्र आदि करते थे। अनेकों प्रकार की युद्ध कलाओं में दक्ष थे। उनका प्रिय शस्त्र सुदर्शन चक्र था। वे एक महान विचारक भी थे। वे अद्वितीय योद्धा थे।भारतवर्ष के समस्त गणराज्यों को यादवों के संघर्ष तले एक करने वाले महान राजनीतिज्ञ थे ।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी कहा है कि श्री कृष्ण जी का महाभारत ग्रन्थ में इतिहास अति उत्तम है। उनके गुण, कर्म व स्वभाव आप्त पुरूषों अर्थात् वेद के ऋषियों के समान थे। उन्होंने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कोई बुरा काम नहीं किया।
मूर्तिपूजा के प्रसंग में सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में वह लिखते हैं कि ‘‘संवत् 1914 (सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम) के वर्ष में तोपों की मार से मंदिर की मूर्तियां अंगरेजों ने उड़ा दी थीं, तब मूर्ति की शक्ति कहां गई थीं? प्रत्युत् बाघेर लोगों ने जितनी वीरता की, और लड़े, शत्रुओं को मारा, परन्तु मूर्ति एक मक्खी की टांग भी न तोड़ सकी। जो श्री कृष्ण के समान (उन दिनों) कोई होता तो इनके (अंग्रेजों के) घुर्रे उड़ा देता और ये लोग भागते फिरते। भला यह तो कहो कि जिसका रक्षक मार खाय, उसके शरणागत क्यों न पीटे जायें?’’
वे न केवल साहित्य, संगीत, कला, नृत्य और योग विशारद थे। अपितु वे इस भारत भूमि पर आम लोगों के लिए लड़ने वाले योद्धा थे, जिन्होंने इंद्र इत्यादि जैसे ताकतवर लोगों के अतिरिक्त जुल्म के विरुद्ध शंखनाद किया था।
श्रीकृष्ण ने कर्म से, ज्ञान से और वचन से मनुष्यमात्र को नई दिशा दी। उन्होंने विश्व को कर्म योग और भौतिकवाद से जोड़ा।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज
हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्यसमाज नहीं मानता कि श्रीकृष्ण जी माखन चोर थे, गौएँ चराते थे, गोपियों संग रास रचाते थे, राधा के संग प्रेम प्रसंग में लिप्त थे, कुब्जा दासी के साथ समागम किया था। या वे ईश्वर का अवतार थे ।
अधिकांश सनातन धर्म अनुयायी जन द्वारकाधीश योगेश्वर श्रीकृष्ण को छोड़कर, पार्थसारथी-योगेश्वर श्रीकृष्ण को भूलकर माखनचोर व राधा के साथ रमण करने वाले राधारमण के पीछे पड़े हैं। लोग श्रीकृष्ण के 'विश्वरूप' को भी पसंद नहीं करते उन्हें तो 'राधा माधव' वाली राधा रमण वाली काल्पनिक छवि ही पसन्द आती है।
लेकिन आर्य समाज इन सब काल्पनिक बातों पर बिल्कुल विश्वास नही करता। ये सब कपोल कल्पित घटनाएं हैं जो कि भक्ति की अतिरेक में लिखी गयी है। जो श्रीकृष्ण जी के चरित्र को और धूमिल ही करती हैं।
बल्कि आर्य समाज ये मानता है कि श्रीकृष्ण जी जन्म से लेकर ४८ वर्ष की उम्र तक ब्रह्मचारी थे जैसा कि महाभारत में वर्णित है। उनकी सिर्फ एक पत्नी रुक्मणी थी जिनसे विवाह करके भी उसके साथ विष्णु पर्वत पर उपमन्यु ऋषि के आश्रम में १२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य तप करके अपने समान तेजस्वी पुत्र प्रद्युम्न को पैदा किया। एक महान योगेश्वर होने की वजह से वे नित्य ईश्वर उपासना, प्राणायाम, संध्या, अग्निहोत्र आदि करते थे। अनेकों प्रकार की युद्ध कलाओं में दक्ष थे। उनका प्रिय शस्त्र सुदर्शन चक्र था। वे एक महान विचारक भी थे। वे अद्वितीय योद्धा थे।भारतवर्ष के समस्त गणराज्यों को यादवों के संघर्ष तले एक करने वाले महान राजनीतिज्ञ थे ।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी कहा है कि श्री कृष्ण जी का महाभारत ग्रन्थ में इतिहास अति उत्तम है। उनके गुण, कर्म व स्वभाव आप्त पुरूषों अर्थात् वेद के ऋषियों के समान थे। उन्होंने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कोई बुरा काम नहीं किया।
मूर्तिपूजा के प्रसंग में सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में वह लिखते हैं कि ‘‘संवत् 1914 (सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम) के वर्ष में तोपों की मार से मंदिर की मूर्तियां अंगरेजों ने उड़ा दी थीं, तब मूर्ति की शक्ति कहां गई थीं? प्रत्युत् बाघेर लोगों ने जितनी वीरता की, और लड़े, शत्रुओं को मारा, परन्तु मूर्ति एक मक्खी की टांग भी न तोड़ सकी। जो श्री कृष्ण के समान (उन दिनों) कोई होता तो इनके (अंग्रेजों के) घुर्रे उड़ा देता और ये लोग भागते फिरते। भला यह तो कहो कि जिसका रक्षक मार खाय, उसके शरणागत क्यों न पीटे जायें?’’
वे न केवल साहित्य, संगीत, कला, नृत्य और योग विशारद थे। अपितु वे इस भारत भूमि पर आम लोगों के लिए लड़ने वाले योद्धा थे, जिन्होंने इंद्र इत्यादि जैसे ताकतवर लोगों के अतिरिक्त जुल्म के विरुद्ध शंखनाद किया था।
श्रीकृष्ण ने कर्म से, ज्ञान से और वचन से मनुष्यमात्र को नई दिशा दी। उन्होंने विश्व को कर्म योग और भौतिकवाद से जोड़ा।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज
हिंदू विरोधी कैसे ?
शनिवार, 7 अप्रैल 2018
who is guilty?
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कसूरवार कौन ? |
बात तब की है जब मै सिर्फ १२ साल का था | मै अपने जन्म स्थान, उत्तरप्रदेश के भदोही जिले में अपने माता-पिता के साथ रहता था | वही भदोही जो अपने कालीन निर्यात के लिए विश्व विख्यात है | मेरा परिवार एक संयुक्त परिवार है, जहाँ मेरे दादाजी अपने दो भाइयों और उनके पुरे परिवार के साथ रहते है | और मै खुद को इसीलिए सौभाग्यशाली समझता हूँ, और पुरे परिवार के साथ बिताये गए वो पल मेरी जिंदगी के सबसे खूबसूरत और ताउम्र यादगार रहने वाले पल थे | मेरे दादाजी मुझसे बहुत स्नेह करते थे और एक वही थे जिनसे मै हठ करके अपनी बात मनवा लेता था | वे मुझे प्यार से ''बऊ'' बुलाते थे | मै हमेशा तो नहीं लेकिन कभी-कभी जिद करके साईकिल से बाजार जाकर घर के लिए कुछ सामान ला लेता था | लेकिन उसके पीछे मेरा एक स्वार्थ छुपा हुआ था, जिस रहस्य को मै और मेरे दादाजी के सिवाय कोई नहीं जानता था, जब मै सामान लेन की जिद करता तो पहले तो दादाजी मनाकर देते लेकिन मेरे बालहठ के आगे वे भी कितने देर टिक पाते, और अंत में मुस्कुराते हुए मुझे पैसे देते हुए प्यार से कहते - '' ठीक है चले जाओ, लेकिन संभल के जाना |''
और जब मै पैसे देखता तो उसमे सामान की तुलना में ज्यादा पैसे हुआ करते थे |
एक दिन मै सुबह उठा तो हल्की-हल्की ठंढ लग रही थी, और मै घर के दरवाजे के पास बैठा था कि अचानक हल्के स्वर में पीछे से दादाजी की आवाज सुनायी दी - '' बऊ ! ''
मै अंदर गया तो अपने कमरे में लेते हुए थे | अंदर जाते ही उन्होंने मुझे पैसे देते हुए कहा - ''बाजार जाकर मेरा बिस्कुट लेकर आओ |''
मैंने पैसे लिए और जाने की लिए मुड़ा ही था की हमेशा की तरह उन्होंने हिदायत देते हुए कहा - ''आराम से जाना, और जल्दी वापस आ जाना |''
मैंने भी बिना उनकी तरफ देखे स्वीकृति से अपना सर हिला दिया | और सायकिल पर सवार होकर बाजार कि तरफ निकल पड़ा.
मैने बाजार पहूचकर जल्दी-जल्दी सामान लिया और वापस लौटने के लिए साइकिल उठायी ही थी की अचानक ही मेरा ध्यान सड़क के किनारे खड़ी एक महिला पर पड़ी, पास जाकर देखा तो अरे ये क्या यह तो रुक्मिणी बुआ है| इनकी हमारे गाँव मे एक छोटी सी दुकान है, और वे हमेशा पैदल ही बाजार जाकर समान लाती थी| लगता है आज उनका सामान का थैला कुछ ज़्यादा वज़नदार हो गया था जिसकी वजह से वे उसे नही ले जा पा रही थी| मैंने देखा तो वे मुझे ही देख रही थी, और वे मुझसे कुछ कहना चाहती हो, लेकिन कह नहीं पा रही थी । मुझे जल्दी थी, लेकिन मै खुद को रोक नहीं सका, और पास जाकर पूछा - '' क्या हुआ बुआ ?''
उन्होंने सकुचाते हुए कहा - ''नहीं....... कु........ कुछ नहीं ।''
लेकिन मेरे जोर देने पर उन्होंने बताया - '' सामान लेने आयी थी, लेकिन वजन ज्यादा होने के कारण नहीं ले जा पा रही हूँ ।''
तो मैंने कहा - ''ठीक है, मै लिए चलता हूँ ।''
तो वह मना करने लगी, लेकिन इससे पहले की वह कुछ बोल पाती मैंने उनका झोला (बैग) अपने केरियर (सायकिल का पिछला हिस्सा, जो वजनी सामान ढोने के काम में आता है) पर रख लिया। तो वह भी मान गयी और हम दोनों पैदल ही घर की तरफ चल दिये। हमारे घर से बाजार की दूरी तकरीबन दो किलोमीटर थी, इसीलिए पहुचने में लगभग एक घंटे का समय लग गया। और इस चक्कर में मै यह भूल गया की मुझे घर जल्दी जाना था। हम घर के करीब ही थे की सामने से छोटे चाचाजी आते दिखाई दिए।
और पास आकर उन्होंने पूछा - '' इतनी देर कैसे हो गयी ?, और पैदल क्यों आ रहे हो ?''
इससे पहले की मै कुछ बोल पाता, उन्होंने फिर क्रोधित होते हुए पूछा - ''यह सामान किसका है ? ''
तो मैंने बताया की सामान तो रुक्मिणी बुआ का है और मेरे कुछ और बोलने से पहले ही वह बुआ पर बिफर पड़े। उन्होंने कहा - ''तुम्हे इतनी भी समझ नहीं है, इस छोटे से बच्चे के ऊपर इतना सामान लाद दिया है ।''
और इतना कहकर उन्होंने रुक्मिणी बुआ का सारा सामान निचे फेक दिया, जो पुरे सड़क पर बिखर गया। मैंने चाचाजी को समझाने और रोकने की पूरी कोशिस की लेकिन उन्होंने मुझे डाँटकर चुप करा दिया, चुपचाप घर जाने के लिए कहा। मैंने एक असहाय सी नजरो से रुक्मिणी बुआ की तरफ देखा तो उनकी आखे सजल हो चुकी थे और कभी भी अश्रुधारा बह सकती है। वे नजरे झुकाये सड़क के किनारे खड़ी थी। चाचाजी ने न जाने उन्हें कितना बुरा-भला कहा, लेकिन वह सब चुपचाप सब सुनती-सहती गयी। और अंत में चाचाजी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे लेकर चल दिए, लेकिन रुक्मिणी बुआ तो अब भी वही खम्भे के सामान अविचलित सी खड़ी है। मेरी आँखे निरंतर उनको ही देखती रही, और खुद से काफी जद्दोजहद के बाद उनकी आँखों से आंसू निढाल हो गए। और धीरे-धीरे वो मेरी आँखों से ओझल हो चुकी थी। मै खुद उस समय समझ नहीं पाया की कसूरवार कौन है ? - मै, बुआ, चाचाजी या कोई कसूरवार है भी की नहीं ?
इस घटना को आज तकरीबन आठ साल बीत चुके है, और शायद वह भी इस घटना को भूल चुकी थी, लेकिन आज भी जब-जब रुक्मिणी बुआ मेरे सामने आती है, तो मेरी नजरो के सामने वो मंजर चलचित्र की भाँती चल पड़ती है। उन्हें मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं रही और ना ही उन्होंने किसी से इस घटना का जिक्र किया शायद इसीलिए मेरा अपराध बोध बढ़ जाता है। उस घटना के बाद मै उनसे ठीक से आँखे मिलाकर बात भी नहीं कर पाता हूँ। जब आज मै यह सच्ची घटना से आप सब को रूबरू कराने जा रहा हूँ, खुद से यही सवाल कर रहा हूँ की कसूरवार कौन ?
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Who's guilty?
मंगलवार, 20 मार्च 2018
आज नवरात्रि का तीसरा दिन है .
आज नवरात्रि का तीसरा दिन है .
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।"
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।
“ पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता”
नवरात्र के तीसरे दिन का महत्व
अपने चंद्रघंटा स्वरूप में मां परम शांतिदायक और कल्याणकारी हैं. उनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है. इसलिए मां के इस रूप को चंद्रघण्टा कहा जाता है. इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनका वाहन सिंह है. इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की मुद्रा है. मां चंद्रघंटा तंभ साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती है और ज्योतिष में इनका संबंध मंगल ग्रह से होता है. इनकी पूजा करने से भय से मुक्ति मिलती है और अपार साहस प्राप्त होता है. माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।माँ का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। इनकी आराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं।
अपने चंद्रघंटा स्वरूप में मां परम शांतिदायक और कल्याणकारी हैं. उनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है. इसलिए मां के इस रूप को चंद्रघण्टा कहा जाता है. इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनका वाहन सिंह है. इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की मुद्रा है. मां चंद्रघंटा तंभ साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती है और ज्योतिष में इनका संबंध मंगल ग्रह से होता है. इनकी पूजा करने से भय से मुक्ति मिलती है और अपार साहस प्राप्त होता है. माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।माँ का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। इनकी आराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं।
माँ के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है। यह दिव्य क्रिया साधारण चक्षुओं से दिखाई नहीं देती, किन्तु साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली-भाँति करते रहते हैं
माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।"
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएँ। भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए
कैसे करें पूजन
मां चंद्रघंटा को लाल फूल चढ़ाएं, लाल सेब और गुड़ चढाएं, घंटा बजाकर पूजा करें, ढोल और नगाड़े बजाकर पूजा और आरती करें, शुत्रुओं की हार होगी. इस दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने का विशेष विधान है. इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है.
मां चंद्रघंटा को लाल फूल चढ़ाएं, लाल सेब और गुड़ चढाएं, घंटा बजाकर पूजा करें, ढोल और नगाड़े बजाकर पूजा और आरती करें, शुत्रुओं की हार होगी. इस दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने का विशेष विधान है. इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है.
मां चंद्रघंटा के इस मंत्र का करें जाप:
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
इस मंत्र का जाप भी होता है शुभकारी:
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः
माँ चंद्रघंटा माँ पार्वती का सुहागिन स्वरुप है. इस स्वरुप में माँ के मस्तक पर घंटे के आकार का चंद्रमा सुशोभित है इसीलिए इनका नाम चन्द्र घंटा पड़ा. माँ चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है एवं उनको असीम शांति और वैभवता की प्राप्ति होती है. माँ चंद्रघंटा के ध्यान मंत्र, स्तोत्र एवं कवच पाठ से साधक का मणिपुर चक्र जागृत होता है जिससे साधक को सांसारिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है.
प्रथम नवरात्र के वस्त्रों का रंग एवं प्रसाद
नवरात्र के तीसरे दिन आप पूजा में हरे रंग के वस्त्रों का प्रयोग कर सकते हैं. यह दिन ब्रहस्पति पूजा के लिए सर्वोत्तम दिन है. तीसरे नवरात्रि के दिन दूध या दूध से बनी मिठाई अथवा खीर का भोग माँ को लगाकर ब्राह्मण को दान करें। इससे जीवन में सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
कवच
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
ॐ
रविवार, 28 जनवरी 2018
दर्द है ..जो रह रह कर छलकता है .....
रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन का कार्य काल मोदी सरकार ने नहीं बढ़ाया था . कारण चाहे जो भी हों लेकिन उन्होंने इसे सहजता से नहीं लिया था और कुछ विशेष राजनैतिक पार्टियों ने ऐसा माहौल बना दिया था कि मानों देश बिना रघुराम राजन के नहीं चल सकता था और राजन सिर्फ देश सेवा के लिए ही विदेश से यहाँ आये थे और उनका कार्यकाल न बढ़ाना शायद मोदी जी का देश विरोधी काम था . स्वाभाविक है, दर्द तो होना ही था . अब जब भी मौका मिलता है वे वर्तमान सरकार की निंदा करना नहीं भूलते . अक्सर बुद्धजीवी तरह के लोग ऐसा करते हैं और उनकी यही आदत उन्हें सामान्य व्यक्ति से भी कम कर देती है . अतीत में हमने कई अमर्त्यसेन भी देखे हैं .
प्रधान मंत्री मोदी के बाद रघुराम राजन भी दावोस पहुंचे और उन्होने मोदी के भाषण सहित हिन्दुस्तान की अर्थ व्यवस्था की गहन समीक्षा कर उसके नकारात्मक पहलुओं को प्रस्तुत किया . यहाँ यह ध्यान रखना उचित है कि अब उनकी पहचान भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर की होती है न कि किसी अमेरिकन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर की . अबकी बार उन्होंने अपने वक्तव्यों के राजनैतिक पुट भी दे दिया और मोदी ने जो लोकतान्त्रिक और विकाशशील हिंदुस्तान की झलक पेश की थी उस पर सवाल उठाये . उन्होंने मोदी के वक्तव्य " भारत में लोकतंत्र बहुरंगी आबादी और गतिशीलता देश का भाग्य तय कर रहें हैं और इसे विकाश के रस्ते पर ले जा रहे हैं ." की जमकर धाज्जिया उडाई . उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि मोदी सरकार का काम काज लोकतान्त्रिक है ? उन्होंने कहा कि सरकार में सिर्फ कुछ लोग फैसले लेते हैं और नौकरशाहों को दरकिनार कर दिया गया है . समझा जा सकता है कि कांग्रेस और राजन का सूचना श्रोत एक ही है .
विश्व पटल पर हिन्दुस्तान की नकारात्मक छवि पेश करने से सभी को बचना चाहिए भले ही कितने ही राजनैतिक मतभेद क्यों न हों .
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