आज जम्मू कश्मीर के एक आतंकवादी अभियान
में सेना के 2 अधिकारियों सहित कुल 5 जवान शहीद हो गए.
इसका कारण क्या है ? आतंकवाद के विरुद्ध बात नहीं हो रही है. बात चल रही है तो जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के उन छात्रों की जिन्हीने भारत की बर्बादी तक जंग लड़ने की बात कही थी ....और
जम्मू कश्मीर की आजादी तक जंग की बात की थी . वे छात्र अभी तक पकड़े नहीं जा सके हैं . कई राजनीतिक
दलों के लोग उनका साथ दे रहे हैं . इन राष्ट्र विरोधी नारे लगाने वाले छात्रों के
साथ खड़े हुए हैं. इनका मकसद क्या है ? इसका मतलब क्या है ? पहली बार केंद्र में ऐसी सरकार है जो चाहे और जो भी न कर
पा रही हो पर बहुसंख्यक वर्ग और देशभक्त लोगो में आशा का संचार कर रही है. जिससे
पाकिस्तान समर्थक और देश के विरुद्ध काम करने कई गैर सरकारी संगठन सर्कार के
विरुद्ध खड़े हो गए है. कभी अवार्ड वापसी, कभी असहिष्णुता, कभी FTII आन्दोलन, कभी
IIT मद्रास, कभी हैदराबाद विश्वविद्यालय तो कभी JNU जैसी घटनाओं द्वारा न केवल
सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं
बल्कि ये देश का बेडा गर्क कर रहे हैं .
क्या इसका मतलब सिर्फ और सिर्फ मोदी का विरोध
करना और उनके विरुद्ध एक संयुक्त प्लेटफार्म खड़ा करना है ? ताकि आगे आने वाले चुनावों
में एक बेहतर विकल्प साबित कर सके और
अल्पसंख्यकों के बोट भी पा सकें . कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि भारत जैसे देश में जहाँ अभिव्यक्ति की इतनी अधिक आजादी है, वहां पर इसका
कितना अधिक दुरूपयोग किया जा रहा है. क्या किसी अन्य देश में इस तरह की नारेबाजी
की जा सकती है ? सरकार के इस निर्णय पर कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कैंपस में राष्ट्रीय ध्वजा रोहण किया जाएगा, कई राजनीतिक दलों के नेता इसके विरोध में आ गए हैं.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज फहराना इन विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर असर
डालेगा. आज ज्यादा तर टी वी चैनलों पर आप देख सकते हैं कि एक अभियान चल रहा है और कई चैनल्स इन राष्ट्र विरोधी तत्वो के साथ खड़े हैं
.
JNU, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय है या जिन्ना विश्वविद्यालय ? पुलिस गेट पर खड़ी है
और विश्वविद्यालय के कुलपति उसे अंदर आने की अनुमति नहीं दे रहे. वे छात्र जिन्होंने भारत विरोधी नारे लगाए थे, वह
कैंपस में घूम रहे हैं, सभाएं कर रहे हैं
और वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं. वेवस पुलिस छात्रों के स्वयं ही सरेंडर करने का इंतजार कर रही है. क्या ऐसे कुलपति को किसी विश्वविद्यालय के
कुलपति बने रहने का अधिकार है ? जादवपुर
विश्वविद्यालय में एक कुलपति है, उन्होंने भी विश्वविद्यालय के अंतर्गत राष्ट्र
विरोधी नारे लगाने, अफजल गुरु के समर्थन में नारे लगाने, याकूब मेमन की फांसी के
विरोध में नारे लगाने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने से इंकार कर दिया . उन्होंने
कहा कि इस तरह की कोई शिकायत उनके संज्ञान में नहीं आई है, और जो हो गया सो हो गया
आगे से कोशिश की जाएगी कि ऐसा न हो. ये क्या बात हुई ? यह कुलपति है या किसी विशेष
मिशन के लिए रखे गए राजनीतिक दल के कार्यकर्ता . हिंदुस्तान की सबसे पुरानी पार्टी
होने का दावा करने वाली पार्टी के सर्वे सर्वा इन छात्रों के समर्थन में है, और वह
हर जगह बयान दे रहे हैं कि छात्रों का शोषण किया जा रहा है. उन नेता को समझ नहीं है .... ये
पूरा हिंदुस्तान समझता है. आज शहीद होने वाले सेना के जवानों के लिए कोई बात करने
के लिए तैयार नहीं है लेकिन उन छात्रों के पक्ष में हवा बनायी जा रही है, जिन के
खिलाफ सरकार ने मामले दर्ज किए हैं . उन वकीलों को जिन्होंने कन्हैया पर कोर्ट
हमले का प्रयास किया था, ऐसे उदृत किया जा
रहा है जैसे इन वकीलों की हरकत देश द्रोहियों से भी कहीं खराब है. उनको भी देशद्रोही का दर्जा दिया जा रहा है और
इसी ग्राउंड पर न्याय पालिका की अवमानना
को बड़ी जोर शोर से उठाया जा रहा है. इन
दोनों की तुलना की जा रही है कि मैं कौन ज्यादा देश्द्रोही है .
संदेश साफ है जहां पर लोगों का नैतिक
पतन इस हद तक हो जाय कि वे अपने व्यक्तिगत
या राजनैतिक स्वार्थ के लिए देश विरोधी गतिविधियों पर उतर आए और उन के साथ खड़े हो जाएं हो देश द्रोही हो और देश के
विरुद्ध युद्ध चला रहें है. ऐसे देश और ऐसे लोकतंत्र, का भगवान ही मालिक है .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें