अभी हमने देखा और सुना कि दिल्ली में हुयी एक रैली में एक किसान ने आत्म ह्त्या कर ली। कई दिन से सारे टीवी चैनलो पर खबर छाई है. आज ऐसा वातावरण बना हुआ है की कोई भी अच्छी और रचनात्मक खबर समाचार पत्रो और टीवी पर जगह नहीं पा सकती है किन्तु असामान्य खबरे मीडिया में छाई रह सकती हैं। इसका सीधा प्रभाव ये होता है कि लोगों को लगता है कि कुछ ऐसा किया जाय जिस से मीडिया में जगह पा सकें। स्वाभाविक है है कि इसके साइड इफेक्ट तो होंगे ही वो अच्छे हों या बुरे। दिल्ली में निर्भया कांड ने सभी को झकझोर दिया था लेकिन क्या इससे पहले इतने बीभत्स कांड नहीं हुए ? बहुत हुए। फूलन देवी के साथ हुयी घटना, जिसे ज्यादातर लोग फूलन पर बनी फिल्म के माध्यम से ही जानते हैं, कितनी दुर्दांत घटना थी। वास्तव में इससे भी अधिक भयानक घटनाये घट चुकी हैं और आगे भी होती रहेंगी क्योकि मानवीय मूल्यों के गिरावट की कोई सीमा नहीं होती है। जितना ख़राब से ख़राब कोई व्यक्ति सोच सकता है उतना कर भी सकता है। दिल्ली में होने के कारण निर्भया कांड को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में बहुत कवरेज मिला। महीनों टीवी, रेडियो और समाचार पत्रों में ये कांड गूंजता रहा। हर अच्छे और बुरे व्यक्ति ने इसे अपनी अपनी तरह अपनाया । लेकिन काफी समय तक बलात्कार की क्रूरता पूर्ण घटनाओं की पूरे देश में जैसे बाढ़ आ गयी। कहते है कि बदनाम होंगे तो भी तो नाम होगा। कुत्सित मानसिकता के लोगों ने बेहद निम्न स्तरीय बदले की भावना से और घ्रणित प्रचार पाने की लालसा कितने ही अजीबोगारीब तरीके से बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया। आज किसानो की आत्महत्या का पूरा माहौल बना है। जितना मीडिया कवरेज मिल रहा है उतनी ही घटनाएं सामने आ रही हैं। मेरा ये कहने का मतलब नहीं है कि इन सबके लिए मीडिया जिम्मेदार है लेकिन असामान्य घटनाओं को सबसे पहले, सबसे निर्भीक और सबसे तेज रिपोर्ट करने की होड़ या अंधी दौड़ ने कहीं न कहीं इन घटनाओं में उत्प्रेरण का काम किया है।
दिल्ली की रैली में गजेन्द्र सिंह की आत्म ह्त्या भी एक कृतिम असामान्य घटना गढ़ने की प्रक्रिया में हुआ हादसा है। अब ये छिपी बात नहीं है कि गजेन्द्र सिंह पूर्णतया किसान नहीं थे, केवल उनका सम्बन्ध एक गाँव से था और ग्रामीण थे। न तो उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब थी और न ही उनके पिताजी ने उन्हें घर से निकाला था. फिर उनके सुसाइड नोट में जो संभवता उन्होंने नहीं लिखा था , ये बातें कैसे आ गयी ? किसने और क्यों डाली ? उनके घरवालों ने उनकी लिखावट होने से इंकार किया है.
रैली में मुख्यतया दिल्ली और आसपास के लोग थे दुसरे राज्यों से आने वालों की संख्या कम थी। रैली का टीवी कवरेज भी बहुत नहीं था और कम से कम लाइव कवरेज तो नहीं ही था जो कुछ नेताओं की चाहत थी। बस फिर क्या किसी शातिर दिमाग में फितरत कौंधी और आनन् फानन में एक किसान या किसाननुमा व्यक्ति को तलाश कर आत्महत्या की फुल ड्रेस ड्रामा करने की पटकथा लिखी गयी. कुछ टीवी के विडियो फुटेज में सुनायी पड़ रहा है "सम्भल के" "ढीला बांधना" "पकडे रहना" "लटक गया क्या " आदि आदि इस और इशारा कर रहा है। बिना रिहर्शल के किये जाने वाले ड्रामे का जो हाल होता है, वही हुआ. ये नाटक एक गंभीर हादसे में बदल गया. जो मरने का ड्रामा कर रहा था वह सचमुच मर गया. चूंकि सबको (कम से कम कुछ लोगों को ) पता था कि ये नाटक है, इसलिए किसी भी ने सहायता के लिए गंभ्भीर प्रयास नहीं किया। सब कुछ सामान्य चलता रहा और भी भाषण भी । हिन्दुस्तान के सभी टीवी न्यूज चैनलों ने इस घटना का लगभग सजीव प्रसारण किया किसी भी चैनल के रिपोर्टर या कैमरा मेन ने भी अगर जरा सा मानवीय प्रयास किया होता तो गजेन्द्र ज़िंदा होते । कहते है कि हर एक का अपना अपना रोल होता है यहाँ मानवीय सहायता का जिम्मा भी सिर्फ पुलिस को निभाना था बाकी लोगों को अपना कम करना था जैसे नेताओं को भाषण देना , प्रेस रिपोर्टर्स को सजीव प्रसारण करना , उपस्थिति लोगों को नेताओं और सुसाइड करने वाले की हौसला अफजाई करना आदि कई लोगों ने मंच से चिल्ला चिल्ला कर पुलिस से किसान को बचाने की अपील भी की और वहां उपस्थिति लोगों ने पुलिस को पहुँचने नही दिया। लोगों ने मंच से सुसाइड नोट पढ़ कर सुनाया और अपने विरोधी दलों के नेताओं को मौत का जिम्मेदार बताया उस समय तक मौत की अस्पताल से पुष्टि भी नहीं हुई थी ।
तो क्या हुआ एक गजेन्द्र सिंह मर गए , …। तो क्या हुआ उसकी बच्चे अनाथ हो गए, ………… तो क्या हुआ उनके मां बाप भाई और बहिनो के आंसू नहीं रूक रहे, ………। वे नहीं समझ पा रहे कि ऐसा क्यों हुआ ?
पर बाकी सबकुछ योजना वद्ध ढंग से हुआ जैसे
- रैली का सजीव प्रसारण
- सबसे तेज, सबसे आगे और सबसे पहले की घोषणा .... टी आर पी में वृद्धि
- लगभग हर चैनल पर पैनल डिस्कसन। ……। पार्टी प्रवक्ताओं को तुरत फुरत काम
- राजनैतिक नफा नुक्सान का आकलन शुरू। ……।
कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो जायेगा असामान्य समाचारों के शिकारी कोई और न्यूज पर टूट पड़ेंगे। और शायद एक न्यूज अनायास उनके हाथ लग गयी भूकंप आ रहा है नेपाल में और उत्तरी भारत में।
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nice post and blog
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