एक गो छोट सस्मरण अपने बचपन कै शेयर कईल चाहत बानीं यहवां। बचपन के दिन आजमगढ़ के सगड़ी तहसील के एक छोट से गाँव में बीतल। उ बेला में कौनो शादी - बियाहे और कर- परजा में नौटंकी, बिरहा और आल्हा का बड़ा चलन रहे। खाली पता चली जाये की कौने गांवें में आल्हा - बिरहा के प्रोग्राम बटे , बस जईले के जुगत भिंडावल जाईल जात रहे।
उ समय में गुल मुहम्मद " बीपत " के आल्हा बड़ा जोर मचवले रहल। बगल के एक गांवें मंझारियां में उनकर आल्हा आईल रहल। हमार मन ना करत रहल मगर कुछ दोस्त लोग हमके चढ़ा देहने और उ रात चुपके से हमहू निकल पड़नी दोस्त लोगन के चढवले में आईके आल्हा सुने खातिन। हम बिना केहू से घरमे में बतवले गईल रहनी । जब भिन्सहरा के हम हम घरे पहुचनी तै पता चलल की भर राते हमार खोजहरिया भईल हवे कि कहवां गईने। उलटे दोस्त लोग मजा लेके डरावे लगने की अब बाप के हाथे चमड़ा आज लाल जरुर होई जाई ।
खट - खट तेगा बोले सन- सन बाजे तलवार ।
सब भागे इधर उधर किसी से सही न जाये ई मार ।।
लगत रात भर जवन आल्हा चलल वोकर ई शब्द अब हमरे कपारे में भी बाजे लागल । बहुत देर तक हम अपने बाप से छिपल रहनी । सामना कईले के हिम्मत न रहल । शायद अम्मा के समझौले कै परिणाम रहल होई या बाप कै गुस्सा कुछ देर बाद शांत हो गईल रहल होई । जब सामना भईल तै पिटाई तै ना भईल । पिताजी अपने समने बैठा के समझौने कि अगर गईला तै बता के जाये के चाहत रहल । रात भर सब परशान रहल तुहरे खातिन । अउर जेकरे संघे गईल रहला ऊ कुल अच्छा लईका ना हवे । इ बात एकदम से हमरे मन में बैठ गईल । ऊ दिन से हम जहाँ भी जाई , घरे जरुर बता के जाईं । शायद उनकर ई प्यार से समझवाल ही रहल कि जवन हमार कदम उनके नज़र में गाँवे के कुछ बदमाश लईकन के संघे बिगड़त लगत रहल ऊ वो लईकन से दुरी बना के चले लागल . ई सीख बादे में बहुत कामे आईल।
आल्हा-बिरहा , रामलीला अउर नौटंकी के प्रति दीवानगी बादे में भी बनल रहे । अगर आप लोग भी ई दीवानगी कै सुनल चाहत होई तै निचे लिंक पे क्लिक कईके डाऊनलोड कै सकिला ।
माड़ोगढ़ की लड़ाई - भाग-१
माड़ोगढ़ की लड़ाई - भाग-२
आल्हा बिवाह- भाग -१
आल्हा बिवाह- भाग -२
उपेन्द्र नाथ
उ समय में गुल मुहम्मद " बीपत " के आल्हा बड़ा जोर मचवले रहल। बगल के एक गांवें मंझारियां में उनकर आल्हा आईल रहल। हमार मन ना करत रहल मगर कुछ दोस्त लोग हमके चढ़ा देहने और उ रात चुपके से हमहू निकल पड़नी दोस्त लोगन के चढवले में आईके आल्हा सुने खातिन। हम बिना केहू से घरमे में बतवले गईल रहनी । जब भिन्सहरा के हम हम घरे पहुचनी तै पता चलल की भर राते हमार खोजहरिया भईल हवे कि कहवां गईने। उलटे दोस्त लोग मजा लेके डरावे लगने की अब बाप के हाथे चमड़ा आज लाल जरुर होई जाई ।
खट - खट तेगा बोले सन- सन बाजे तलवार ।
सब भागे इधर उधर किसी से सही न जाये ई मार ।।
लगत रात भर जवन आल्हा चलल वोकर ई शब्द अब हमरे कपारे में भी बाजे लागल । बहुत देर तक हम अपने बाप से छिपल रहनी । सामना कईले के हिम्मत न रहल । शायद अम्मा के समझौले कै परिणाम रहल होई या बाप कै गुस्सा कुछ देर बाद शांत हो गईल रहल होई । जब सामना भईल तै पिटाई तै ना भईल । पिताजी अपने समने बैठा के समझौने कि अगर गईला तै बता के जाये के चाहत रहल । रात भर सब परशान रहल तुहरे खातिन । अउर जेकरे संघे गईल रहला ऊ कुल अच्छा लईका ना हवे । इ बात एकदम से हमरे मन में बैठ गईल । ऊ दिन से हम जहाँ भी जाई , घरे जरुर बता के जाईं । शायद उनकर ई प्यार से समझवाल ही रहल कि जवन हमार कदम उनके नज़र में गाँवे के कुछ बदमाश लईकन के संघे बिगड़त लगत रहल ऊ वो लईकन से दुरी बना के चले लागल . ई सीख बादे में बहुत कामे आईल।
आल्हा-बिरहा , रामलीला अउर नौटंकी के प्रति दीवानगी बादे में भी बनल रहे । अगर आप लोग भी ई दीवानगी कै सुनल चाहत होई तै निचे लिंक पे क्लिक कईके डाऊनलोड कै सकिला ।
माड़ोगढ़ की लड़ाई - भाग-१
माड़ोगढ़ की लड़ाई - भाग-२
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आल्हा बिवाह- भाग -२
उपेन्द्र नाथ
खटखट खटखट अँगुली करती, पटपट पटपट अक्षर ।
जवाब देंहटाएंयुद्धभूमि वीरों का आसन, वहाँ करे क्या मच्छर ।
आल्हा गाने वालें तोड़ें, इक झटके में तख्ता
बहुत बहुत एहसान सुनाया, करूँ वन्दना सादर ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से नव संवत्सर की शुभकामनाएँ।