बुधवार, 26 मई 2021

टैलेंटेड बहू


अरे मैडम! आप कब आई? हमें पता भी नहीं चला। 

हा-हा-हा। कैसे पता चलता सर! आज पूरा स्टाफ रूम किसी विशेष कार्य में लीन है। इतना सन्नाटा मैंने पहले तो कभी नहीं देखा। आज तो आप लोगों को स्टाफ रूम का एसी आॅन करना भी याद नहीं रहा। यह देखिए कितनी गंदगी यहाँ हो रही है, मैं ज़रा सफ़ाई वाले को बुलाती हूँ। और हाँ! जगदीश सर, क्या आपने प्रिंसिपल सर को अपना प्रोजेक्ट दिखा दिया? रीना मैडम आपके बेटे की तबियत कैसी है अब? और...........

रजनी मैडम बस भी कीजिए अब। बैठ जाइए ज़रा। 

क्या हुआ सर? आप सभी मुझे इस प्रकार से क्यों देख रहे हैं?

(यकायक सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे। उनके ठहाकों की अचानक आई आवाज़ से रजनी मैडम सिहर गईं।)

मैं कुछ भी समझ नहीं पा रही हूँ रीना मैडम। सब ठीक तो है ना? आप सभी मुझ पर यूँ हँस क्यों रहे हैं?

इसलिए क्योंकि हम सभी राहुल सर के लिए लड़की ढूँढ रहे हैं और राहुल इसलिए परेशान है कि आपको शादी की इतनी जल्दी क्या थी? वह आपसे शादी करना चाहता है।

ओ........... तो ये बात है। राहुल जल्दी कहाँ! मुझे शादी किए हुए तो आठ साल हो गए। और तुमने विद्यालय दो साल पहले ज्वांइन किया है। और हाँ! तुम तो मुझसे शादी कर लेते, पर क्या मैं तुमसे करती! ये भी तो एक बात है।

हा-हा-हा। बस यही तो बात है मैडम रजनी। आपकी हाज़िर जवाबी भी गज़ब है। कितनी सहजता से आपने इस बात की दिशा को घुमा दिया। कोई और होता तो न जाने कितना बड़ा हंगामा हो गया होता।

इसमें हंगामा करने वाली क्या बात है? यदि हमें किसी की कोई बात या कोई व्यक्ति विशेष पसंद है, तो वे हमारी व्यक्तिगत् भावनाएँ हैं। हमें तब तक उनका सम्मान करना चाहिए, जब तक कि वे हमारे लिए नुकसानदायक न हो। तुमने अपनी भावनाएँ, मेरा सम्मान करते हुए सबके समक्ष रखी। तुम मुझे परेशान नहीं कर रहे हो, मेरे आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुँचा रहे हो, मेरे परिवार के लिए किसी परेशानी का सबब नहीं हो, तो भला मैं क्यों तुम्हारा अपमान करूँ?

मैडम बस आपके इसी व्यवहार के कारण ही तो मुझे आप जैसी लड़की से विवाह करना है। स्टाफ रूम में आते ही आपको सबकी कितनी फ़िक्र है! आप किसी काम के लिए कभी इस बात का इंतज़ार नहीं करती कि कौन करेगा, स्वयं करना आरंभ कर देती हो। घर, बच्चा, विद्यालय, समाज सभी प्रकार की जिम्मेदारियाँ इतने अच्छे से निभाती हो। यह सब हम स्वयं देखते हैं। तो भला आप जैसी लड़की से कौन विवाह करना नहीं चाहेगा?

सोच लो राहुल। यह सब तुमने बाहरी रूप देखा है। मेरे जैसी लड़की से हर लड़का शादी करना चाहता है, परन्तु मेरे जैसी लड़की का साथ निभाने के लिए मेरे पति जैसा धैर्यशील व निरहंकारी व्यक्ति होना भी आवश्यक है। क्या तुम स्वयं को उन कसौटियों पर खरा मानते हो?

हाँ मैडम! जब कमाऊ, सर्वगुणसम्पन्न वधु मिलेगी, तो क्या करेंगे अहंकार का।

हा-हा-हा। यह कहना जितना आसान है राहुल, करना उससे कहीं अधिक कठिन। जब लड़की स्वयं कमाती है, तो अपने निर्णय भी स्वयं लेती है। उसका अपना एक समाज भी बनता है, जिसके अनुसार उसे व्यवहार भी करना होता है और सामाजिक दायित्व भी निभाने होते हैं। उन्हीं सामाजिक दायित्वों को निभाने के लिए उसे उन्हीं 24 घंटों में से समय एडजस्ट करना होता है, जो सभी के पास हैं। इसी समायोजन में यदि कभी-कभार कुछ दायित्व या व्यक्ति नज़रअंदाज हो जाएँ तो यह उसका एक गुनाह बन जाता है। किसी को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि वह अपने लिए कुछ कर पायी या नहीं। आज उसे खाना भी मिला या नहीं। उसे कोई कष्ट तो नहीं। कहीं कोई दर्द तो नहीं। बस सबके सम्पन्न होते कार्यों पर सब प्रसन्नचित रहते हैं, परन्तु यदि कोई भूल हो जाए या तनिक भी वह अपने लिए कुछ कर ले, तो वह गैर-जिम्मेदार हो जाती है। और पता है तुम्हें ऐसी ‘टैलेंटेड बहू’  को कुंठित होने का भी कोई अधिकार नहीं होता! यदि किसी भी प्रकार की कोई कुंठा उसके चेहरे पर नज़र आती है तो तुरंत प्रश्न दागा जाता है कि कौन कहता है तुम्हें नौकरी करने के लिए? घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाओ। घर बैठो। बस! इन्हीं शब्दों के वार से बचने के लिए लबों को सीलें टैलेंटेड बहू अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती जा रही है।

वस्तुतः हमारा समाज दोगला है। उसे टू-इन-वन बहू चाहिए। एकः जो कुछ बोले नहीं। सीधी-सादी, सरल। घूँघट में लिपटी। आदेशों पर दौड़ने वाली। एक पैर पर तैनात।

और दूसरीः जो माॅर्डन हो। आत्मनिर्भर हो। कमाऊ हो। एक फोन काॅल पर एवेलेबल हो। समाज में प्रजेंटेबल हो। सबके काम बिना किसी ऊँ-आह के करती जाए। और फिर समाज में आप यह भी कहें कि हमने तो अपनी बहू को बेटी का दर्जा दिया हुआ है। वह जैसे चाहे, वैसे रह सकती है। हम इतने आधुनिक विचारों के हैं कि हमें बहू की नौकरी, पहनावे या उसके समाज से कोई आपत्ति नहीं है। हमने अपनी बहू को इतनी स्वतंत्रता दी हुई है कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सकती है। मुझे यह समझ नहीं आता राहुल बहुओं को इस प्रकार की स्वतंत्रता देेने का अधिकार इन्हें किसने दिया? बहू परिवार की सदस्य होती है या बँधुआ मजदूर, जो इनकी दी हुई स्वतंत्रता के आधार पर अपने कदम बढ़ाती है। क्या उसका अपना कोई वजूद नहीं होता? वह इस प्रकार की स्वतंत्रता ससुराल वालों के रहमोकरम पर पा रही है या अपनी योग्यता के आधार पर? उसकी अपनी प्रतिभा क्या कोई मायने नहीं रखती? यदि वह यह डबल जिम्मेदारी निभा रही है तो भी ससुराल के अहसानों तले दबकर! जिसमें उसके लिए सोचने वाला कोई नहीं है। वह सुबह मशीन की भांति स्टार्ट हो रात तक चलती रहती है। और चलते रहना उसकी मजबूरी भी है। यदि वह रूकी तो तानों एवं आरोपी की बौछारों से उसका स्वागत घर में होगा। वास्तविकता तो यह है कि ‘टैलेंटेड बहू’ आत्महित एवं स्वार्थ के अनुसार चाहिए। 

अब तुम्हें ही देख लो। तुमने मुझमें देखा कि घर-परिवार-समाज-नौकरी-बच्चा सभी कुछ मैं संभाल लेती हूँ, इसलिए तुम्हें मेरे जैसी पत्नी चाहिए। पर क्या तुमने ये सोचा है कभी कि मुझे भी इसी प्रकार का सर्वगुणसम्पन्न वर चाहिए हो सकता है? मैं भी ऐसे व्यक्ति को अपने पति के रूप में चाहती होंगी जो अपने सारे दायित्वों को पूर्ण निष्ठा से पूरा करे और मैं वह समय अपने सपनों को पूरा करने में लगा सकूँ। एटीएम नहीं बनना मुझे, अपने सपनों को आसमान की उड़ान देनी है। परन्तु क्या कोई विकल्प है मेरे पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए?

तुमने देखा होगा कि आजकल पारिवारिक विवाद के मामले बहुत बढ़ गए हैं। जानते हो क्यों? क्योंकि लोग घर पर बेटी रूपी बहू न लाकर ‘टैलेंटेड वधु’ लाने लगे हैं। जिस पर आते ही सभी अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारियाँ बाँटनी आरंभ कर देते हैं। कोई रसोई उसे भेंट में देता है, तो कोई घर के खर्च में उसकी सहभागिता समझाता है। बीस वर्ष से ऊपर के देवर-ननद बेटे व बेटी के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। घर का कौना-कौना उसे एक-एक जिम्मेदारी के रूप में दिखाया जाता है। मस्तिष्क में अनगिनत आइडियाज़ के साथ उसका भव्य स्वागत किया जाता है। परन्तु कोई उससे यह नहीं पूछता कि इस नए परिवार से उसे क्या आशाएँ हैं? वह कौन-कौन सी जिम्मेदारियाँ पूर्ण करने में स्वयं को सक्षम मानती है? या कौन-कौन सी जिम्मेदारियाँ पूर्ण करने की इच्छुक है? उसकी इच्छा अथवा अभिलाषाओं पर तो कभी कोई विचार ही नहीं करता। बस यहीं से विवाद आरंभ हो जाते हैं। कुछ समय तक तो वह अपने पूर्ण उत्साह से समस्त दायित्वों का निर्वहन करती है परन्तु सभी व्यक्ति प्रत्येक कार्य में निपुण नहीं हो सकते। जहाँ उसकी निपुणता में कमी आयी, वह तुलना एवं उपहास भरे अल्फ़ाजों से छलनी होने लगती है। यहाँ उसके स्वाभिमान पर चोट कर उसके धैर्य की अन्तिम सीमा तक परीक्षा ली जाती है। और जब पानी सीमा से ऊपर जाने लगता है, तो परिवार विवादों की बाढ़ में बहने लगताा है। चूँकि वह बाँध ‘टैलेंटेड बहू’ के धैर्य के चरम बिन्दु पर टूटा है, तो निश्चित रूप से वह है- ‘गिल्टी’।

इसलिए तुमसे कहती हूँ ‘गिल्टी बहू’ मत ढूँढो। अब देखो तुम्हें ‘टैलेंटेड लड़की’ से कितना कुछ सुनना पड़ा! हो सकता है.......... ना-ना यकीनन तुम्हें यह सब सुनकर बुरा लग रहा होगा। लेकिन मैं तुम्हें मात्र यही समझाना चाहती थी कि यदि यह सब सुनने का धैर्य तुममें है, तो तुम ‘टैलेंटेड बहू’ से शादी करने के योग्य हो। यदि तुम इन समस्याओं को सुलझाने की योग्यता रखते हो और यदि तुम अपने हमसफ़र के स्वाभिमान का सम्मान कर सकते हो तो तुम ‘टैलेंटेड बहू’ से शादी कर सकते हो। साथ ही यदि तुम उसकी उड़ान पर अपने अहंकार एवं ईष्र्या की भावना को नियंत्रित रख समाज में उसकी प्रतिभा की प्रशंसा कर सकते हो, तो तुम ‘टैलेंटेड बहू’ से विवाह कर सकते हो। यदि तुम उसके बढ़ते करियर पर बच्चों की जिम्मेदारी स्वयं ले, उसे समय दे सकते हो तथा स्वयं को उसके सहारे के रूप में न प्रस्तुत कर, उसके साथी बन साथ चल सकते हो, तो तुम निश्चित रूप से ‘टैलेंटेड बहू’ से शादी कर लेना। परन्तु यदि तुम मात्र स्वार्थसिद्धि हेतु कि वह तुम्हारे एटीएम के रूप में तथा तुम्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने के लिए तुम्हारी पत्नी के रूप में आए, तो याद रखना ज़िंदगी ‘गिल्टी/नोट गिल्टी/ हू इज़ गिल्टी?’ के बीच उलझकर रह जाएगी। अब निर्णय तुम्हें करना है कि नम्बर एक बेहतर है अथवा नम्बर दो!



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