नमस्कार ;
शनिवार, 28 अप्रैल 2012
मेरी नयी कहानी " आबार एशो [ फिर आना ] "
नमस्कार ;
गुरुवार, 26 अप्रैल 2012
ना कोंसो अब हमें
बुधवार, 25 अप्रैल 2012
चार रुपइया और बढ़ा दो
कर्ज में डूबे कुछ किसान हैं
दर्द देख के -सभी – यहाँ चिल्लाते
सौ अठहत्तर अरब का सोना
कैसे फिर हम खाते ??
अठाइस है बहुत बड़ा
चार रुपइया और बढ़ा दो
३२-३३ – संसद देखो भिड़ा पड़ा
कहीं झोपडी खुला आसमां
सौ-सौ मंजिल कहीं दिखी
कहीं खोद जड़ – कन्द हैं खाते
कहीं खोद भरते हैं सोना
नोटों की गड्डी “वो” सोया
किसी के पाँव बिवाई – छाले
उड़-उड़ कोई मेवे खा ले
( सभी फोटो साभार गूगल/ नेट से लिया गया )
भाई -भाई लड़ मरते
सौ – सौ बीघे धर्म – आश्रम
बाबा-ठग बन जोत रहे
कितने अश्त्र -शस्त्र हैं भरते
जुटा खजाना गाड़ रहे
भोली – भाली प्यारी जनता
गुरु-ईश में ठग क्यों ना पहचाने ??
कुछ अपने स्वारथ की खातिर
सब को वहीं फंसा दें
निर्मल-कोई- नहीं है बाबा !
अंतर मन की-सुन लो-पूजो
खून पसीने श्रम से उपजा
खुद भी भाई खा लो जी लो !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर’ ५
८-८.२० पूर्वाह्न
कुल यच पी
२५.०४.२०१२
रविवार, 22 अप्रैल 2012
सभी मनुष्य एक ही जाति हैं |
बुधवार, 18 अप्रैल 2012
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक- बेनीपुरी की साहित्य-साधना, लेखक- डा0 कमलाकांत त्रिपठी
प्रकाशक- पुस्तक पथ, वाराणसी, वितरक- शारदा संस्कृत संस्थान, सी. 27/59, जगतगंज, वाराणसी-221002, मूल्य- 350 रूपये (पेपर बैक)।
डा0 कमलाकांत त्रिपठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘बेनीपुरी की साहित्य साधना’ भारतीय ग्राम्य जीवन और आदर्शोन्मुक्त यथार्थवाद के प्रतिनिधि कथाकार रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य को समग्रता में व्यक्त करते हुए उसे वर्तमान जीवन के विविध आयामों में व्याख्यायित करती है। यह पुस्तक बेनीपुरी के जीवन-कार्य तथा साहित्य साधना का सर्वांगीण परिचय ही नहीं प्रस्तुत करता बल्कि उनके कार्य तथा साधना का सूक्ष्म विशलेषण कर उन समस्त विशेषताओं को अधोरेखित भी करता है जो व्यक्ति बेनीपुरी तथा लेखक बेनीपुरी को अलग कर देता है।
पुस्तक के प्रथम दो अध्यायों में लेखक ने बेनीपुरी के साहित्य साधना के लगभग सभी पक्षों पर दृष्टिपात किया है। कथामकता को आधार बनाते हुए उन्होने बेनीपुरी साहित्य को दो प्रधान वर्गों में विभाजित किया है- कथा-साहित्य और कथेतर-साहित्य। तृतीय अध्याय में डा0 त्रिपाठी ने प्रेरण स्रोत, विषयोपन्यास, सैद्धांतिक मान्यताएं तथा कथ्य उपशीर्षकों के अन्तर्गत बेनीपुरी के साहित्य की विशेषताओं को अंकित किया है। अन्य कतिपय विशिष्टताओं के साथ-साथ बेनीपुरी साहित्य का जनवादी पक्ष लेखक को सर्वोपरी लगता है। उन्होने लिखा है- ‘‘जनता के साहित्यकार बेनीपुरी ने जनता के पक्ष को जनता की भाषा दी। उनका यह जनवादी पक्ष उनके साहित्य में सर्वत्र मुख्य है।’’ बेनीपुरी की कथ्यगत विशिष्टताओं की चर्चा में लेखक लिखता है- ‘‘उनका भाव लोकसंघर्ष के साथ आनन्द का भी है। परिस्थितयों के संघर्ष में क्रांतिकारी और संघर्ष की समाप्ति के बाद उल्लास के गायक का रूप-दर्शन बेनीपुरी में होगा।
शैलीकार की भाषा का पूरा विश्लेषण तब तक अधुरा माना जाता है जब तक साहित्यिक भाषा की समग्र प्रक्रिया उसके विविध स्तरों की संरचना के आधार पर सोदाहरण स्पष्ट नहीं की जाती। डाॅ0 त्रिपाठी ने पुस्तक के चतृर्थ अध्याय ‘बेनीपुरी की भाषा शैली’ में यह कार्य बड़ी सुक्ष्मता, गहन विश्लेषण क्षमता के साथ किया है। तुलनात्मक विवेचना का आधार ग्रहण करते हुए लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि भाषा के प्रत्येक स्तर के इकाई का चयन करते हुए बेनीपुरी ने किस प्रकार प्रभाव विस्तार का ध्यान रखा है। बेनीपुरी के गद्य के शब्द-वर्ग, वाक्य-विन्यास, परिच्छेद, विराम-चिन्ह, मुहावरें-कहावतें आदि सभी इकाईयों की उपयोगिता तथा अनुकूलता की चर्चा सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव विस्तार के आधार पर साहित्य भाषा का सही आकलन प्रस्तुत किया है।
डा0 कमलाकांत त्रिपाठी का ग्रन्थ बेनीपुरी की साहित्य साधना बेनीपुरी की विशिष्टता के आकलन का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। बेनीपुरी साहित्य पर अधावधि प्रकाशित प्रबन्धों में यह प्रबंध अपना अलग स्थान रखता है। साहित्य के अध्येताओं की आकलन परिधि के विस्तार की दृष्टि से यह निश्चय ही उपयोगी रचना है।
एम अफसर खां सागर
सोमवार, 16 अप्रैल 2012
आस
चुनाव आयोग द्वारा सन् 2008 में विधानसभा के परिसीमन के दौरान धानापुर विधानसभा का नाम बदलकर सैयदराजा कर दिया गया था। इसके उपरान्त धानापुर के लोगों ने 16 अगस्त 1942 के आन्दोलन के शहीदों से प्रेरणा लेकर धानापुर बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया। नाम बदलने के लिए समिति के लोग लगातार जन जागरण कर हाईकोर्ट जाने की तैयारी किया।
इस कड़ी में सरकार व चुनाव आयोग को पंजीकृत डाक के माध्म से धानापुर विधानसभा का नाम यथावत रखने का गुहार लगाते रहें। जब समिति के गुहार पर कोई कार्यवाही नहीं हुई तो विगत 09 अप्रैल 2012 को उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दाखिल कर धानापुर विधानसभा का नाम बदलने का आग्रह किया गया। जिसकी सुनवाई 12 अप्रैल 2012 को न्यायधीश द्वय माननीय आर के अग्रवाल व निय माथुर द्वारा की गयी।
सुनवाई के दौरान दोनो पक्ष के वकीलों ने अपने तर्क रखें। जिसमें संघर्ष समिति के वकील द्वारा क्षेत्र की जनता का आत्मीय लगाव धानापुर के नाम के प्रति दर्शते हुए बताया कि धानापुर सिर्फ एक जगह का नाम नहीं बल्कि शहीदों की धरती है। धानापुर के नाम के साथ लाखें लोगों की आस्था जुडी है। दोनो पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायधीश द्वय ने शासकीय अधिवक्ता को सरकार का पक्ष रखने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है।
इस आदेश के बाद धानापुर के लोगों में हर्ष के साथ न्याय मिलने की आस में नाम बदले की उम्मीद जागी है।