tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post8629256912689617168..comments2023-09-28T14:36:01.371+05:30Comments on पूर्वांचल ब्लॉग लेखक मंच: ‘‘एक फूल दो माली’’हरीश सिंहhttp://www.blogger.com/profile/13441444936361066354noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-83515754490679819752011-07-31T10:21:16.898+05:302011-07-31T10:21:16.898+05:30आदरणीय लेखिका जी ! आपका लेख पूर्वाग्रह से मुक्त प्...आदरणीय लेखिका जी ! आपका लेख पूर्वाग्रह से मुक्त प्रतीत नहीं हो रहा है ...ऐसे विषयों पर लेखन से पूर्व मस्तिष्क का कागज़ पूरी तरह कोरा होना चाहिए. कुछ बिन्दुओं पर आपके उत्तर चाहूंगा - <br /><br />"साधु तो निःस्वार्थ भाव से जनकल्याण के लिए समर्पित होते हैं।" <br /><br />भारत का प्राचीन राजनीतिक आदर्श भी ऐसा ही था. राजा और अमात्य का जीवन साधु जैसा ही होना चाहिए अन्यथा वह जनता का शोषण ही करेगा जैसा कि अभी हो रहा है. यह इसलिए हो रहा है क्योंकि आप जैसे विचारक राजनीति में भ्रष्टाचार का शाब्दिक विरोध तो करते हैं पर राजनीति में साफ़-सुथरे लोगों के आने का समर्थन भी नहीं करते. अर्थात राजनीति में आप यथास्थिति बनाए रखना चाहती हैं ? मैंने और भी लोगों के मुंह से सुना है कि साधु को राजनीति में नहीं आना चाहिए....मेरा पार्ष्ण है कि फिर किसे आना चाहिए ? ...क्या राजनीति केवल भ्रष्ट लोगों के लिए ही आरक्षित है ? और क्या यह अघोषित आरक्षण समाप्त नहीं होना चाहिए ? <br /><br /> "बाबा यह सब ना समझी में कर रहे हैं या जानबूझकर देश की जनता को ‘देसी आतंकवाद’ का पाठ पढ़ा रहे हैं।"<br /><br />बाबा का कृत्य आपको किस तरह "देसी आतंकवाद का पाठ" लग रहा है ? क्या इमानदारी, राष्ट्र प्रेम , भारतीय मूल्यों और योग के समर्थन और उसके प्रति समर्पित होना देसी आतंकवाद है ? क्या भ्रष्टाचार, चरित्रहीनता, और पश्चिमी देशों की अवैज्ञानिक जीवन शैली जैसे मानवीय पतन के विरोध की बात करना देसी आतंक वाद है ? यदि ऐसा है तो तो स्वामी विवेकानंद , स्वामी दयानंद सरस्वती, सरदार भगत सिंह , चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे लोग भी देसी आतंकवादी हैं. क्या आपको नहीं लगता कि जाने-अनजाने में आपने इन भारतीय विभूतियों का घोर अपमान किया है ?<br /><br />"गाँधी-नेहरू के देश में हिंसा के उपदेश, सम्पूर्ण विश्व में भारत के वीरों की किरकिरी करा रहे हैं।"<br /><br />बाबा या अन्ना ने हिंसा की बात कब की है ? प्रत्युत सरकार ने बाबा के जन आन्दोलन को हिंसा से कुचल दिया है जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट तक को संज्ञान लेना पडा. देश की विदेशों में किरकिरी किस कारण से हो रही है बाबा के आन्दोलन से या सरकारी हठधर्मिता से, आर्थिक घोटालों से और आतंकी हमलों से ? देश की किरकिरी का सही निदान किये बिना उसका उपचार कैसे किया जा सकेगा ? और सुनिए ....यह भी एक सुस्थापित राजनीतिक सत्य है कि गांधी-नेहरू यदि चाहते तो इस देश के टुकड़े नहीं हुए होते .....तब किरकिरी नहीं हुयी थी क्या ?<br /><br /> <br /><br />"मात्र राजनीतिक लाभ के लिए देश को बाँटना कहाँ तक उचित है? क्या निजस्वार्थ देशहित से बड़ा हो चला है?"<br /><br /> <br /><br />यह आप किसके लिए कह रही हैं ? क्या अन्ना और बाबा देश को बाटने में लगे हुए हैं ? लेखिका जी ! देश तो बट चुका बहुत पहले.......गांधी-नेहरू के सामने ही बट गया था..... रहा सहा, अब उनके ही उत्तराधिकारी जातिगत आरक्षण और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के निंदनीय कृत्यों और षड्यंत्रों को हथियार बनाकर खंड-खंड कर देने पर पिछले पैंसठ सालों से तुले हुए हैं.<br /><br />राष्ट्र की इस कर्मशाला में सभी प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है, जो प्रश्न हल नहीं किये जायेंगे उनके लिए ऋणात्मक अंकों की भी व्यवस्था है. <br /><br />मूल्यांकनकर्ता होंगे इस ब्लॉग के सभी पाठकों के साथ-साथ इस पूरे देश के लोग. <br /><br />समय सीमा :- शीघ्रता न करें ...खूब सोच-समझकर उत्तर दें ...ये राष्ट्रीय महत्त्व के प्रश्न हैं.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-29287479987078247862011-07-29T15:21:49.523+05:302011-07-29T15:21:49.523+05:30लेख से पहले तो लेखिका की प्रचारकामी सोच दिख जाती ...लेख से पहले तो लेखिका की प्रचारकामी सोच दिख जाती है की लेख में जो चित्र लगाया गया है वो लेख से सम्बंधित ना होकर लेखिका है तो इस का सीधा अर्थ यह हुआ की यह लेख तार्किक ना होकर सस्ते लोकप्रचार को पाने का साधन था और शायद इसी लिए लेखिका ने सही तथ्य पता लगाने का भी प्रयास नहीं किया है | आइये देखें कैसे <br />"अन्ना हजारे का अध्याय अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि बाबा रामदेव ने जो सियासी भूचाल लाया" , बिल्कुल गलत बाबा रामदेव तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध पिछले १५ वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं और वो अपनी एक भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम की १ लाख किलोमीटर की यात्रा में ही थे जब की अचानक अन्ना हजारे और IAC का उदय हो गया था |<br />"साधु न होते हुए भी साधुत्व के सभी गुण अन्ना हजारे स्वयं में समाहित किये हुए है" ,शायद इसी लिए उनकी टीम में अग्निवेश जैसे दागी भरे हुए हैं | उन्होंने उमा भारती और चौताना को राजनीतिक होने के कारण मंच पर नहीं आने दिया परन्तु नक्सली और अलगाववादी समर्थक अग्निवेश को साथ रखा |<br />"बाबा के इस संघर्ष से निजी स्वार्थ की बू आती है" ,क्यों की बाबा ने मंच पर स्थान दिया अन्ना को वरना उससे पहले तो दिल्ली के कुत्ते भी अन्ना हजारे को नहीं जानते थे | उन्होंने अन्ना हजारे के आन्दोलन को बिना शर्त समर्थन दिया जबकी अन्ना के कभी तो गैरजिम्मेदाराना बयान दिए की बाबा आन्दोलन करने के लिए परिपक्व नहीं हैं तो कभी कहा की बाबा अगर उनका समर्थन करना चाहते हैं तो उनकी शर्तें माननी होंगी |<br /><br /> विचारणीय है कि अन्ना हजारे के समर्थन में उतरा बॉलीवुड व अन्य बुद्धिजीवी वर्ग बाबा की राजनीतिक भूख को पहले ही भांप गये, या शायद यूँ कहें की वो बाबा के आन्दोलन से भयभीत हो गए थे |शायद उनको पता था की अन्ना का आन्दोलन तो मात्र एक प्रहसन अहि उनकी कुछ हानि नहीं होगी परन्तु बाबा के आन्दोलन से वो भयभीत हो गए थे |<br /><br />यही कारण रहा कि इनमें से किसी ने भी बाबा के अनशन का समर्थन नहीं किया। एक लाख लोगों की भीड़ केवल दिल्ली में देश भार में करोनो और आप कह रही हैं कोई नहीं |<br /><br />बाबा से योग सीखाने के लिए अग्रिम पंक्तियों में बैठने का टिकट रू 25000 और पीछे बैठे लाचार गरीब जनता। कभी योग शिविर में जाकर देखो , वहां किसी से कोई टिकेट नहीं लिया जाता है और फिर जिसे आगे कहा जा रहा है वो भी इतना ही आगे होता है की बाबा को वो लोग TV पर देखते हैंह और पीछे वाले बी TV पर देखते हैं और जो घर में बैठ कर निःशुल्क देखते हिं वो भी TV पर देखते हैं |<br /><br />साधु बाबा जान बचाकर भागे स्त्रीवेश में? कितना शर्मनाक व अपमानजनक है यह सब।यह लेखिका की इस्लामिक मानसिकता है जिसमे स्त्री को पुरुष से हीनतर माना जाता है |वैसे आन्दोलन का लक्ष्य जनचेतना थी | बलिदान साधन होता है साध्य नहीं |<br /><br /><br /> यह कैसी वीरता थी? कैसे दृढ़ संकल्प था? क्या इन महिलाओं के भरोसे बाबा ने अनशन आरम्भ किया था? बाबा अपनी शांतिपूर्ण गिरफ्तारी के लिए तैयार थे परन्तु पुलिस उनकी हत्या करना चाहती थी , बाबा की वीरता छत्रपति शिवाजी , महाराणा प्रताप वाली वीरता थी | बाबा ने देश की 120 करोड़ देशभक्त जनता के भरोसे पर आन्दोलन प्रारंभ किया था और वो महिलाएं भी उसी में से थीं |<br /><br />मीडिया का रामदेव कवरेज इसके दायित्वबोध को संदिग्ध करता है। और अन्ना का कवरेज ??बाबा तो इस सम्बन्ध में तैयारी के साथ आये थे उनके पास BST की श्रंखला है और अपना टीवी चैनल पर अन्ना को अचानक इतना महत्त्व क्यों मिल गया की जन्तात मंतर को तःरेर चौक बना दिया गया ???अंकित कुमार पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02401207097587117827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-82344330990711805452011-07-21T19:56:26.107+05:302011-07-21T19:56:26.107+05:30बाबा के मुद्दे और दिग्विजय के परोक्ष समर्थन पर असह...बाबा के मुद्दे और दिग्विजय के परोक्ष समर्थन पर असहमत हूँ आप से ..आशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.com